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27 May 2023 · 1 min read

मन मंदिर के कोने से

मन मंदिर के कोने से
झांक रहा अर्ध चेतनमन
धन दौलत अमूल्य अपार
प्रसाद उठा ले जाऊं या

खाली हाथ लौट जाऊं
पर बिन श्रम पूजा कैसे
भर हाथ उठा ले जाऊं
कौन देख रहा यहां पे

पत्थर मूरत क्या जाने
जग में लेना देना क्या
मन जो चाहे वही करो
जग से क्या लेना देना

अचेतन मन यही कहता
पर सोच है निज अपनी
चेतनमन हर पल कहता
कोई श्रम नहीं मेरा इसमें

इसलिए मेरा अधिकार नही
कर्महीनता फिर कहता
उठा जल्दी चल दे यहां से
क्या जाने तूने क्या किया

कलयुग तेजाजी महाराज
कहते दूसरो से छीना झपटी
ये है निज मेरा अधिकार
श्रम विहीन फल पा लेना

किसी को जरूर यह भाता
बिन परिश्रम सब क्षण में
मिल जाए मारा मारी युग में
कौन ऐसा मौका जाने देता

चंचल मन यह कहता है
मुंह औरों से छीन आहार
अपना पेट भर लेना है
चेतन मन हमेशा कहता

अपना हक ले औरों को
हक देना कितना अच्छा
सात्त्विक मन सुविचारों
का रखवाला कपटी मन

कुविचारों का जग बसेरा
विचार प्रभाव योग से ही
जीवों की कहानी बनती
जग पथ प्रदर्शक होती

नकारात्मकता अर्धचेतन मन
सकारात्मकता चेतनमन का
जड़ पादप पल्लव है जो
कर्म अकर्म से पहचान बनाता

सत्कर्म खुशी मदद प्रेम प्यार
सहानुभूति योगों से मानसिक
शांति से चेतन मन बनाकर
अर्धचेतन को काबू कर पाता
जग अभिमान बढ़ाता है॥

तारकेशवर प्रसाद तरूण

Language: Hindi
4 Likes · 650 Views
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