Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Jun 2023 · 7 min read

■ ज्वलंत सवाल

#कितने_सिंह_सलामत…?
■ बिपरजॉय के बाद ज़रूरी है गहन जांच व सत्यापन
★ शेरों की स्थिति को लेकर सामने आना चाहिए सच
【प्रणय प्रभात】
गुजरात को दुनिया मे पहचान व आर्थिक समृद्धि देने वाले ऐशियाई शेरों की सलामती का सवाल आज फिर अपना जवाब मांग रहा है। दुःख की बात यह है कि समय-समय पर कुदरती कहर का शिकार बनते रहे सिंहों की सुरक्षा को लेकर इस बार भी कोई सुगबुगाहट नहीं है, जबकि उनकी आबादी वाला समूचा अंचल आपदा की जद में रहा है। विडंबना की बात यह है कि शेरों की सलामती के मसले से ध्यान भटकाने की बेज़ा कोशिश हमेशा की तरह एक बार फिर की गई है। जो सोची-समझी साजिश भी मानी जा सकती है। पीएम नरेंद्र मोदी और गुजरात के गृह-मंत्री ने शुक्रवार को इस बारे मे थोड़ा सा रुझान ज़रूर दिखाया। वरना इससे पहले तक इसे लेकर कोई चर्चा किसी भी स्तर पर नहीं थी। मीडिया की अनदेखी इस मामले में सर्वाधिक शर्मनाक है। ऐसे में सिंहों की सलामती का सवाल खड़ा होना लाजमी है।
विनाशकारी चक्रवात “बिपरजॉय” अपनी विकरालता के प्रमाण छोड़ कर रुखसत हो चुका है। केंद्र से ले कर राज्य तक की सरकार नुकसान के आंकलन में जुट गई है। तूफ़ान की आमद से पहले मोर्चा संभालने वाले मीडियाई महारथी अपनी दिलेरी का परिचय देने में अब भी कोई कसर छोड़ने को राज़ी नहीं। प्रशासनिक मशीनरी सम्बद्ध विभागीय दलों के साथ मैदान में है। सटीक सूचनाओं के बलबूते समय रहते एहतियाती क़दम उठाने वाली सरकारें खुश हैं। बड़े पैमाने पर अधोसंरचनात्मक क्षति के बावजूद जन-हानि व पशु-हानि को टालने में क़ामयाबी निस्संदेह एक बड़ी उपलब्धि है। जिसका चुनावी साल में महत्व सत्तारूढ़ पार्टी अच्छे से जानती है।
आपदा में अवसर तलाशने और उसे साधने में उसकी महारत एक बार फिर साबित हुई है। तूफानी आपदा के बीच तूफानी राहत और बचाव के प्रयास लाभकारी सिद्ध होने तय हैं। जिसके पीछे “इवेंट मैनेजमेंट” जैसा कौशल आने वाले दिनों में अपना असर दिखाएगा ही। जिसकी भूमिका “पेड मीडिया” ने रचना पहले से जारी रखा हुआ है।
आपसी अंतर्कलह के बीच कथित एकता की संरचना में जुटे विपक्षी मुंगेरीलाल ज़्यादा हलकान हैं। जिन्हें भीषण आपदा के बाद भी “अरण्य-रोदन” के लिए न मुद्दा मिल पा रहा है, न माहौल। छुट-पुट आरोपों के स्वर कर्कश “राग-दरबारी” के सुरों के नीचे कसमसा कर रह जाने तय हैं। ऐसे में कुदरती कहर को भी सियासी गणितज्ञ भाजपा के लिए वरदान मान कर चल रहे हैं। गुजरात के दर्ज़न भर से अधिक जिलों को तहस-नहस करने वाले तूफान को महज तीन-चार क्षेत्रों में समेट कर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी चक्षुहीन श्रद्धा और वफ़ादारी की मिसालें पेश कर चुका है। चैनली खबरों के तमाशबीन “ऑल इज़ वेल” की अनुभूति कर नीचे वालों से लेकर ऊपर वाले तक का शुक्रिया अदा कर रहे हैं।
ऐसे में एक निरीह प्रजाति के जीवन का मुद्दा पिछली बार की तरह इस बार भी गौण हो कर रह गया है। आज और अभी तक हाशिए पर पड़े (पटके गए) उस ज्वलंत मसले को मीडिया के तयशुदा सहयोग से केंद्र व राज्य सरकार एक बार फिर गुमनानी के पर्दे के पीछे छिपाने में सफल रही है, जो उसके लिए फ़ज़ीहत का सबब बन सकता है। मामला गुजरात के गिर क्षेत्र में आबाद दुर्लभ प्रजाति के एशियाई सिंहों का है। शेरों की वही नस्ल, जिस पर लंबे समय से खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।
वही प्रजाति, जिसे लुप्त होने से बचाने के लिए दुनिया में दूसरे आशियाने के तौर पर “कूनो वन्यजीव अभ्यारण्य” को वजूद में लाया गया। जो उपेक्षित मध्यप्रदेश के सीमावर्ती “श्योपुर” ज़िलें में है और एशियाई शेरों के बजाय अफ्रीका व नामीबिया के चीतों की ऐशगाह बना दिया गया है। दुर्भाग्य की बात यह है कि दुर्लभ शेरों के लिए गिर से भी अधिक मुफ़ीद “कूनो नेशनल पार्क” का नैसर्गिक धरातल निरीह चीतों के लिए क़ब्रगाह साबित हो रहा है। ज़िलें में अपार विकास की संभावनाओं से जुड़ी एक महत्वाकांक्षी परियोजना राजनैतिक छल का शिकार बन कर रह गई है। जो ना तो चीतों के जीवन के साथ न्याय है और ना ही दुर्लभ शेरों के भविष्य के साथ इंसाफ़।
मूल वजह “एशियाई सिंहों” पर एकाधिकार और बर्चस्व की कुत्सित मंशा और दबंग चेष्टा। वो भी इतनी विराट, जिसके समक्ष देश की सर्वोच्च अदालत का “सुप्रीम आदेश” भी बौना साबित हो कर रह गया गया है। केंद्रीय संरक्षण में सबल गुजरात सरकार की विशुद्ध व्यावसायिक सोच व अनाधिकृत चेष्टा ने शेरों की दुर्लभ नस्ल का भविष्य दांव पर लगा कर रखा हुआ है। जिसके पीछे की एक बड़ी वजह मध्यप्रदेश की बेबस राजनीति और श्योपुर ज़िलें की बेहद दुर्बल इच्छा-शक्ति व जनता की आत्मघाती उदासीनता को भी माना जा सकता है।
यही कारण है कि “अफ्रीकी चीतों” की आमद के 9 महीने बाद भी पर्यटन विकास की बयार तो दूर, हवा का एक मामूली झोंका भी ज़िले ने महसूस नहीं किया है। दो दर्ज़न से अधिक गांवों के विस्थापन, अरबों के व्यय और करोड़ों रुपए के शुभारंभ के बाद भी “कूनो नेशनल पार्क” का शुभ साबित हो पाना बाक़ी है। अशुभ का आग़ाज़ ज़रूर अंजाम का इशारा दे चुका है। यह और बात है कि बेरहम सियासत और बेशर्म नौकरशाही ने त्रासदीपूर्ण सच को हल्काने से अधिक कुछ नहीं किया है। एक नर, एक मादा व एक शावक चीते की मौत सुर्खी तक नहीं बटोर पाई है। एक नर चीते के अन्यत्र पलायन को भी कतई गंभीरता से नहीं लिया गया है। बाक़ी की सेहत व सुरक्षा भगवान भरोसे है और बचे हुओं को बचाने से ज़्यादा दिलचस्पी नए मेहमानों को अन्य ज़िलें में भेजने को लेकर बनी हुई है। मंशा हमेशा से छले जाते रहे ज़िले को आगे भी छलते रहने की। ताकि यहां की प्रजा “मसीहाओं की मसीहाई” पर निर्भर और “चिर-याचक” बनी रहे।
बहरहाल, विषय गम्भीर है और मुद्दा ज्वलंत। प्राकृतिक आपदा के बाद और संभावित महामारी के फैलाव से पहले ज़रूरत मैदानी जांच व भौतिक सत्यापन की है। सूक्ष्म और निष्पक्ष जांच आपदा प्रभावित जूनागढ़ व गिर-अमरेली के उस संपूर्ण क्षेत्र की होनी चाहिए, जो एशियाई शेरों की सघन बसाहट के कारण विश्व-प्रसिद्ध है। शर्मनाक बात यह है कि चक्रवात-पीड़ित क्षेत्रों में शमिल उक्त इलाकों का पल-पल की जानकारी देने वाली मीडिया ने बीते चार दिनों में ज़िक्र करना तो दूर, नाम तक नहीं लिया है। केवल कच्छ, मांडवी और द्वारिका पर केंद्रित मीडिया की निगाहों पर चढ़ा घोर लापरवाही का काला चश्मा भी शेरों की सलामती को लेकर संदेह पैदा करता है।
हादसों के दौरान तथा हादसों के बाद एशियाई सिंहों की वास्तविक स्थिति का सच
देश के सामने आए, यह जवाबदेही सरकार की है। आवश्यक यह भी है कि उच्चतम न्यायालय इस मामले को संज्ञान में लेकर केंद्र व राज्य सरकार से जवाब तलब करे। बेमतलब की बातों पर बेनागा कोहराम मचाने वाले विपक्षी भी चाहें तो इस मुद्दे को लपक कर निरीह जीवों के प्रति अपनी संवेदना का परिचय दे सकते हैं। चुनावी साल में मध्यप्रदेश, चंबल संभाग और श्योपुर ज़िलें के नागरिकों को भी इस सवाल को लेकर मुखर होना चाहिए ताकि प्रदेश के हितों से खिलवाड़ के खिलाफ एक परिणाम-मूलक माहौल बन सके।
सवाल एक बार फिर उठना चाहिए कि ऐशियाई सिंह, जिनका अस्तित्व गुजरात के गिर-सोमनाथ और अमरैली-जूनागढ़ के बीच सीमित होकर सुरक्षित नहीं है उनकी आज स्थिति क्या है? प्राकृतिक आपदाओं सहित अन्य तरह के संकटों से जूझती इस दुर्लभ प्रजाति के सिंहों की सलामती के वास्तविक आँकड़े सामने आने अब बेहद ज़रूरी हैं। जिन्हें गुजरात की हठधर्मी व कानून-विरोधी सरकार हमेशा की तरह बदलने या छुपाने का कुत्सित प्रयास इस बार भी करेगी। वही सरकार जो प्रकृति की इस अनमोल धरोहर पर सिर्फ अपना एकाधिकार मानती आई है। बेशर्मी का आलम यह है कि इन सिंहों की सुरक्षा को लेकर गुजरात सरकार की तरह केंद्र सरकार, वन्य जीव संरक्षण संस्थान व मीडिया भी कतई गंभीर नहीं है।
इस प्रजाति के संरक्षण व संवर्द्धन हेतु मध्यप्रदेश के श्योपुर ज़िले में बनाया गया दूसरा आशियाना बरसों बाद भी कुछ जोड़ों की आमद के इंतज़ार में है। यह और बात है कि इस मामले में गुजरात की सरकार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय तंक के आदेश की अवहेलना कर अपनी दबंगई प्रकट की है। सम्बंधित संस्थानों की अनुशंसाएं रद्दी की टोकरी में डाली जाती रही हैं। मध्यप्रदेश की सरकार भी इस मुद्दे पर सुप्त स्थिति में है जिसकी वजह बताने की ज़रूरत नहीं। श्योपुर ज़िले में कूनो नदी के आसपास करोड़ों की लागत से स्थापित और सतत विकसित कूनो वन्यजीव अभ्यारण्य में एशियाई सिंहों की आमद और दहाड़ ही ज़िले को पर्यटन के लिहाज से विश्वपटल पर लाने वाली साबित हो सकती है। इस सच की अनदेखी किसी भी दृष्टि से उचित नहीं। यह जानते हुए भी अंचल व क्षेत्र के कथित विकासदूत व हितैषी उदासीनता की मोटी चादर ओढ़कर सोए पड़े हैं, जो बेहद दुःखद है। ऐसे में एक बार फिर हमारी आवाज़ों का समवेत होना ज़रूरी है। ताकि राष्ट्रीय नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का यह मामला देश के उस दुरंगे तंत्र तंक भी पहुंचे, जो एक तरफ विश्व-बंधुत्व की डींग मारता आ रहा है और दूसरी तरफ उन दो प्रदेशों के बीच सामंजस्य स्थापित करने को लेकर बेपरवाद हैं जहाँ एक ही दल की सरकारें हैं। राजनैतिक कथनी व करनी के दोगलेपन से जुड़े इस यक्षप्रश्न को अब उत्तर मिलना ही चाहिए। कृपया न्याय व संवेदना की भावना से जुड़ी इस मांग को अपना सम्बल प्रदान करें। यही आग्रह मीडिया के महारथियों से भी है। आगे इच्छा समय की, जो समय आने पर न्याय भी करता है और अन्याय की सज़ा भी देता है।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

1 Like · 360 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

आप
आप
Bodhisatva kastooriya
समय
समय
meenu yadav
जरूरी है
जरूरी है
ललकार भारद्वाज
हमारे बुजुर्गो की वैज्ञानिक सोच
हमारे बुजुर्गो की वैज्ञानिक सोच
मधुसूदन गौतम
स्वच्छ पर्यावरण
स्वच्छ पर्यावरण
Sudhir srivastava
आज है जो
आज है जो
संजय निराला
कदम बढ़ाओ साथ खड़े हैं,कहने वाले मुंह फेरे खड़े हैं।
कदम बढ़ाओ साथ खड़े हैं,कहने वाले मुंह फेरे खड़े हैं।
Madhu Gupta "अपराजिता"
राजनीति और रिश्ते
राजनीति और रिश्ते
ओनिका सेतिया 'अनु '
" रोटी "
Dr. Kishan tandon kranti
कविता
कविता
Mahendra Narayan
दोष किसे दें
दोष किसे दें
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
गहराई
गहराई
पूर्वार्थ
मित्र
मित्र
Iamalpu9492
डॉ अरूण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक 😚🤨
डॉ अरूण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक 😚🤨
DR ARUN KUMAR SHASTRI
5. Tears in God's Eyes
5. Tears in God's Eyes
Santosh Khanna (world record holder)
दर्शन के प्रश्न (Questions of Philosophy)
दर्शन के प्रश्न (Questions of Philosophy)
Acharya Shilak Ram
*जातिवाद ने किया देश का, पूरा बंटाधार (गीत)*
*जातिवाद ने किया देश का, पूरा बंटाधार (गीत)*
Ravi Prakash
।।संघर्ष।।
।।संघर्ष।।
Priyank Upadhyay
स्क्रीनशॉट बटन
स्क्रीनशॉट बटन
Karuna Goswami
आजकल कुछ सुधार है प्यारे..?
आजकल कुछ सुधार है प्यारे..?
पंकज परिंदा
मुश्किलों से तो बहुत डर लिए अब ये भी करें,,,,
मुश्किलों से तो बहुत डर लिए अब ये भी करें,,,,
Shweta Soni
3995.💐 *पूर्णिका* 💐
3995.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
कांग्रेस
कांग्रेस
जय लगन कुमार हैप्पी
*आजादी की राखी*
*आजादी की राखी*
Shashi kala vyas
संवेदना कहाँ लुप्त हुयी..
संवेदना कहाँ लुप्त हुयी..
Ritu Asooja
मुझे मेरी पहचान चाहिए
मुझे मेरी पहचान चाहिए
MEENU SHARMA
जो भी सोचता हूँ मैं तेरे बारे में
जो भी सोचता हूँ मैं तेरे बारे में
gurudeenverma198
गम भुलाने के और भी तरीके रखे हैं मैंने जहन में,
गम भुलाने के और भी तरीके रखे हैं मैंने जहन में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
हाथी की शादी
हाथी की शादी
विजय कुमार नामदेव
माया सूं न प्रीत करौ, प्रीत करौ परमेस।
माया सूं न प्रीत करौ, प्रीत करौ परमेस।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
Loading...