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8 May 2023 · 1 min read

*कहाँ साँस लेने की फुर्सत, दिनभर दौड़ लगाती माँ 【 गीत 】*

कहाँ साँस लेने की फुर्सत, दिनभर दौड़ लगाती माँ 【 गीत 】
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
कहाँ साँस लेने की फुर्सत ,दिनभर दौड़ लगाती माँ
(1)
सुबह हुई तो जैसे-तैसे ,बिटिया रानी जग पाई
जब जागी तो रोती-हँसती ,बस्ते को लेकर आई
छूट गई पानी की बोतल ,लेकर भागी जाती माँ
(2)
खुद दफ्तर जाने से पहले ,खाना और खिलाना है
दफ्तर जाकर देर शाम तक ,अपना मगज खपाना है
थक कर जब भी घर आती है ,दो कप चाय बनाती माँ
(3)
होमवर्क की कॉपी पकड़े ,कुकर ध्यान में रहता है
दिनभर भूख लगी है कोई ,चिल्लाकर ही कहता है
एक सीरियल मनपसंद पर ,वह भी देख न पाती माँ
कहाँ साँस लेने की फुर्सत दिनभर दौड़ लगाती माँ
—————————————————-
मगज = मस्तिष्क
—————————————————-
रचयिता :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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