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27 Mar 2023 · 2 min read

अभिरुचि

हम अपने स्वामित्व में संपत्ति का मूल्यांकन उसकी उपयोगिता मूल्य के स्थान पर उसके स्वामित्व मूल्य या भावनात्मक मूल्य से करते हैं।
परिणामी प्रभाव यह होता है कि हम अपने जीवन- काल में ऐसी मानसिक संरचना के कारण इतनी सारी चीजें जमा कर लेते हैं, भले ही हमारे दैनिक जीवन में उनकी उपयोगिता कुछ भी न हो।
इनमें कलाकृतियाँ, पुरानी वस्तुऐं , दुर्लभ डाक टिकट, पुराने सिक्के और मुद्राएँ, चित्र और तस्वीरें आदि शामिल हैं; जो हमारे बेशकीमती शौक संग्रह का एक हिस्सा है।
ये वस्तुऐं कुछ हद तक हमें मानसिक संतुष्टि और भावनाओं को सांत्वना देते हैं, लेकिन सीमा से परे संग्रह के लिए सनक बन जाते हैं, जो दूसरों के सामने हमारे व्यसनी रवैये को दर्शाता है।
हम अपने बेशकीमती संग्रह से प्रसन्न महसूस कर सकते हैं, लेकिन अन्य इसे सनक के रूप में
देखते हैं, और अपने दृष्टिकोण से इसे उचित महत्व नहीं देते हैं।
हम यह नहीं समझते हैं कि अनजाने में हम ऐसी वस्तुओं को इकट्ठा करने और उनके संरक्षण में बहुत समय और पैसा लगाते हैं, जिसे दूसरों द्वारा समय और धन की बर्बादी के रूप में देखा जाता है।
हमारे संग्रह का शौक/आदत कभी-कभी हमारे परिवार में अनावश्यक विवाद, टकराव और संघर्ष को जन्म देता है, जिसे टाला जा सकता है ,
यदि हम अपनी गतिविधि को कुछ उचित हद तक सीमित करते हैं, यह समझते हुए कि हमारी गतिविधि से दूसरों को असुविधा हो सकती है।
इसलिए, हम दूसरों की भावनाओं को उचित महत्व देते हुए संग्रह की अपनी शौक गतिविधियों को जारी रख सकते हैं , और अपने जीवन में अप्रिय विवादित क्षणों से बच सकते हैं।

Language: Hindi
375 Views
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