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7 Mar 2023 · 1 min read

होली (होली गीत)

सारे उत्सव,
फीके पड़ते
होली के सम्मुख ।
होली के सम्मुख ।

ईद भले हो
बिना दीद के,
लाए उदासी, दीवाली ।
लेकिन रंग,
नृत्य से होली
जाती नहीं कभी खाली ।

प्रणय-नीर से
तर हैं आँखें
औ’ गुलाल से मुख ।
होली के सम्मुख ।

हरियारे जंगल
में खिलते
रंग-बिरंगे-से टेसू ।
बस्ती-बस्ती
में आनंदित-
से लहराते हैं गेशू ।

निर्धन की कुटिया
से कुछ पल
दूर भागते दुख ।
होली के सम्मुख ।

तिलक लगाती
और नाचती
गलबहियों का है घेरा ।
रंगों से आपूर
समय ने
आकर डाला है डेरा ।

सुख का चिंतन
ही जीवन है
भोगो थोड़ा सुख ।
होली के सम्मुख ।

इतना सुंदर
पर्व नहीं है
पूरी पृथ्वी पर, देखो !
मस्ती,मद-
होशी,रंगों में
जिसको देखो,तर देखो !

मुँह-लटकाए
क्यों बैठे हो,
करो नृत्य का रुख ।
होली के सम्मुख ।

सारे उत्सव
फीके पड़ते
होली के सम्मुख ।
होली के सम्मुख ।
०००
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।

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