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15 Aug 2022 · 1 min read

हास्य – व्यंग्य

बेलन से भयभीत करो वनिता वनिता प्रभु जाप सदा ही।
जाप करे उर क्षोभ घटे तन का मिटता सब ताप सदा ही।
भोग – विलास से दूर रहें मन से मिटता हर पाप सदा ही।
नित्य नवा कर शीश मिले उर हर्ष छँटे परिताप सदा ही।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’

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