Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Aug 2022 · 9 min read

*मुंडी लिपि : बहीखातों की प्राचीन लिपि*

1)
मुंडी लिपि : बहीखातों की प्राचीन लिपि
————————————————————-
लॉकडाउन पार्ट वन के इक्कीस दिन कविता और कहानी लिखते लिखते कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। अंतिम दिन अर्थात चौदह अप्रैल को सहसा मुंडी लिपि का स्मरण हो आया ।
समस्त व्यापारियों के बहीखातों की यही लिपि हुआ करती थी । हमारे परिवार में भी सन 1984 तक बहीखातों में मुंडी चलती थी । बचपन में स्वेच्छा से मैंने भी मुनीमजी से थोड़ी बहुत मुंडी सीख ली थी । अपना नाम लिखने लगा था। फिर मैंने मुंडी लिपि पर एक लेख तैयार किया और उसे फेसबुक के साथ-साथ कुछ व्हाट्सएप समूहों में भी प्रेषित किया। साथ में मुंडी लिपि में लिखे गए मेरे हस्ताक्षर भी थे। दुर्भाग्य से या कहिए सौभाग्य से , मुंडी लिपि के मेरे हस्ताक्षर में एक अक्षर में गलती थी । मुंडी लिपि के कुछ जानकारों ने इस गलती को पकड़ लिया और मेरा ध्यान आकृष्ट किया ।

सर्वप्रथम पीपल टोला (निकट मिस्टन गंज), रामपुर निवासी श्री प्रवीण कुमार जी के सुपुत्र श्री संकेत अग्रवाल ने लिखा कि अंकल जी यह सही नहीं है । एक टिप्पणी मेरे चाचा श्री कृष्ण कुमार अग्रवाल जिन्हें हम कृष्णा चाचा कहते हैं, उनकी आई। लिखा था कि मुझे मुंडी आती है , यह गलत है ।

अग्रवालों के राष्ट्रीय व्हाट्सएप समूहों से भी मेरे हस्ताक्षर को सुधारने का प्रयास किया गया। मुंडी लिपि में बुजुर्गों को अपना बचपन याद आने लगा । श्री लव कुमार प्रणय की ऐसी ही प्रतिक्रिया थी। श्री रामआसरे गोयल सिंभावली (हापुड़) भी मुंडी लिपि को लेकर बहुत उत्साहित थे। श्री उमेश कुमार अग्रवाल राजस्थान निवासी हैं । आपकी आयु भी लगभग सत्तर वर्ष है। आपने बहुत उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दी और फिर व्यक्तिगत रूप से मुझे टेलीफोन करके बधाई भी दी। आप का मानना था कि प्राचीन लिपियों को संरक्षित किया जाना चाहिए।

अब मैंने व्हाट्सएप समूहों पर लिखा कि मैं मुंडी लिपि सीखना चाहता हूँ। अत: मुझे मुंडी लिपि की वर्णमाला उपलब्ध कराने का कष्ट करें । इस पर मेरी दुकान के पड़ोसी श्री विजय कुमार सिंघल सर्राफ का एक पत्र मुझे प्राप्त हुआ, जिसमें मुंडी लिपि के कुछ अक्षर लिख कर बताए गए थे। मेरा काम इससे चल गया । पत्र में मुंडी लिपि में कुछ संयुक्ताक्षर उदाहरणार्थ लीलाधर रामौतार खेमकरन आदि लिख कर बताए गए थे। मैंने इसके आधार पर मुंडी सीखना शुरू कर दिया। शाम होते होते व्हाट्सएप पर कृष्णा चाचा जी का भी एक पत्र मिला। इसमें मुंडी के कुछ अक्षरों को लिखकर समझाया गया था । आपका पत्र ज्यादा साफ-सुथरा और लिखावट सुंदर थी। इससे मुझे बहुत फायदा हुआ।

इसके अलावा व्हाट्सएप समूह पर मेरे फूफा जी फरीदपुर (बरेली) निवासी सर्राफा व्यवसायी श्री महेश कुमार अग्रवाल जी भी सक्रिय हो गए । आपने मुझे मुंडी सिखाने का बीड़ा उठा लिया। आपकी लिखावट बहुत ही सुंदर थी । आपने संपूर्ण वर्णमाला मुंडी लिपि में मुझे उपलब्ध कराई। यह एक बहुत बड़ा योगदान था।

अब मैंने कुछ दूसरा ही विचार मन में बना लिया था । मैं मुंडी लिपि मे दोहों को लिखकर उनका संग्रह प्रस्तुत करना चाहता था । इसके लिए मैंने दोहों की रचना की तथा उन दोहों को मुंडी लिपि में लिखकर फरीदपुर निवासी अपने फूफा जी को भेजना शुरू किया। पहला दोहा था:-
शुरू लॉकडाऊन टू , मुंडी लिपि का ज्ञान
चलो बहीखाता लिखें , पावन दिव्य महान
एक अन्य दोहा था :-
नदियाँ निर्मल हो गईं , पावन दिखी समीर
बंदी जब से आदमी , कुदरत हुई अमीर

जब मैंने मुंडी लिपि में अपने छह दोहे लिखकर व्हाट्सएप समूह में फूफा जी को भेजे , तब उन्होंने उनको समूह-पटल पर ही शुद्ध करके अपनी हस्तलिपि में मुझे वापस लौटा दिए। तथा टिप्पणी की कि प्रारंभिक तीन दोहों में कुछ अशुद्धियाँ ठीक कर ली हैं, अन्य तीन दोहे ठीक जान पड़ते हैं । अब तुम मुंडी काफी सीख गए हो । साथ ही फोन भी किया और मेरे कार्य पर प्रसन्नता व्यक्त की । आपकी आयु लगभग सत्तर वर्ष की है । आपके पिताजी और भी धाराप्रवाह तथा अत्यंत सुंदर सुलेख में मुंडी लिपि में कार्य करते थे। आपने उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण किया तथा यह बताया कि अब आपके परिवार में पिताजी की मृत्यु के बाद अनेक वर्षों से बहीखातों का मुंडी लिपि में चलन बंद हो गया है। लेकिन फिर भी आपको मुंडी खूब अच्छी तरह आती है ।

इसी बीच मेरे चाचा श्री विजय कुमार अग्रवाल जी का मेरे पास फोन आया । आपने बताया कि आपको मुंडी लिपि खूब अच्छी तरह आती है तथा जो सीखना चाहो वह सिखा दूँगा । बस फिर क्या था ! मैं आपसे मुंडी की बारीकियाँ सीखने लगा ।

मुंडी लिपि की वर्णमाला के अध्ययन से यह बात भी सामने आई कि रामपुर और फरीदपुर में कुछ अक्षरों उदाहरणार्थ और को लिखे जाने का ढंग अलग अलग है । इस तरह लॉकडाउन का मैं समझता हूँ, बहुत ही अच्छा सदुपयोग हो गया।

————————————-
2)
मुंडी लिपि की वर्णमाला
————————————-
मुंडी लिपि में वर्णमाला के कुल तीस अक्षर हैंं। इसमें विशेषता यह है कि और के लिए एक समान अक्षर है । इसी तरह इ ई ए ऐ के लिए एक अक्षर है। आश्चर्यजनक रूप से के लिए भी वही अक्सर प्रयोग में आता है । यही हाल ओ औ उ ऊ का है और उनके लिए भी एक ही अक्षर है । इस तरह इन अक्षरों से जहाँ एक ओर शब्दों का आरंभ होता है तथा शब्दों के बीच में यह अक्षर आते हैं , वहीं दूसरी ओर इन तीनों अक्षरों का उपयोग प्रमुखता से मात्राओं के लिए भी होता है।

मुंडी लिपि में छोटी और बड़ी दोनों प्रकार की मात्राओं के लिए एक ही अक्षर है । इस कारण मुंडी लिपि में जब लिखे हुए को पढ़ा जाता है, तब यह स्पष्ट नहीं होता कि मात्रा छोटी लगी है अथवा बड़ी लगी है । इसमें अनुमान से काम चलाना पड़ता है। इसी तरह और दोनों के लिए एक ही अक्षर है । यहाँ भी अनुमान ही लगाना पड़ता है । स श ष के लिए एक अक्षर है। अर्थात शाम और साम इन दोनों में लिखने की दृष्टि से कोई भेद नहीं है । बस अनुमान से पढ़ा जाएगा । इस तरह मुंडी में देवनागरी की तुलना में अक्षर कम हैं। देवनागरी के 2-2 3-3 अक्षरों की तुलना में मुंडी लिपि में केवल एक अक्षर से काम चला लिया जाता है । मात्राओं की दृष्टि से भी मुंडी लिपि में अक्षरों का भारी अभाव है ।
मुंडी लिपि में मात्राएँ कम से कम लगाई जाती हैं। अगर बिना मात्रा लगाए काम चल सकता है ,तो मात्रा नहीं लगती। मात्रा न लगने के कारण शब्द को सही- सही पकड़ना सरल नहीं होता । ऐसे में अनुमान से काम चलाना पड़ता है । लेकिन कम अक्षरों के कारण तथा मात्राओं के कम प्रयोग के कारण मुंडी का लिखना बहुत सरल हो गया । उसमें प्रवाह आ गया और उसकी गति बहुत तीव्र होने लगी । जो लोग देवनागरी लिपि नहीं सीख पाते तथा जिन्हें देवनागरी लिपि को सीखना बहुत कठिन लगता है ,वह लोग भी मुंडी सरलता से सीख जाते हैं । मुंडी की लोकप्रियता का संभवत एक बड़ा कारण यह रहा । इसी के आधार पर अनेक व्यक्तियों द्वारा यह आक्षेप लगाया जाता है कि मुंडी अनपढ़ लोगों की भाषा है । यह सही नहीं है।
वास्तव में कई – कई भाषाओं के जानकारों ने तथा तीव्र बुद्धि संपन्न व्यापारियों ने अपने बहीखातों में परंपरागत रूप से मुंडी का बड़े ही गौरव और गरिमा के साथ प्रयोग किया है । उन्हें मालूम रहता है कि मुंडी लिपि के कारण हमारे बहीखातों की गोपनीयता पूरी तरह सुरक्षित है । कोई भी अनजान व्यक्ति कितनी भी चतुराई से उनके बहीखातों को उलट-पुलट कर देख ले तथा उसमें लिखी हुई बातों को पढ़ना चाहे तो मुंडी लिपि के कारण वह असमर्थ हो जाता है । वास्तव में मुंडी लिपि व्यापारियों की गोपनीयता की रक्षा करने में बहुत समर्थ लिपि सिद्ध हुई है। मुंडी लिपि में जो बहीखाता तैयार होता है ,उसे अगर ग्राहकों के सामने खोलकर फैला दिया जाए ,तब भी ग्राहकों के पल्ले कुछ नहीं पड़ता । यहाँ तक कि अगर एक पृष्ठ पर आठ ग्राहकों के खाते लिखे हुए हैं ,तब ग्राहक को यह समझना भी कठिन होता है कि इन आठ में से उसका खाता कौन सा है ? उसे अंग्रेजी आ सकती है तथा हिंदी की देवनागरी लिपि भी आ सकती है ,लेकिन मुंडी उसके लिए नितांत अपरिचित होती है । यह मुंडी लिपि व्यापारियों की एक अपनी अनूठी विरासत है। इसके साथ उनकी परंपरा और सैकड़ों वर्षों का अनुभव जुड़ा हुआ है ।

अब इक्कीसवीं सदी में धीरे धीरे व्यापारिक प्रतिष्ठानों से मुंडी लिपि की विदाई हो रही है। नई पीढ़ी इस लिपि के महत्व को या तो समझ नहीं पा रही है या फिर समझते हुए भी नजरअंदाज कर रही है ।जब कि वास्तविकता यह है कि यह भारत की एक न केवल प्राचीन लिपि है बल्कि हिंदी की एक बहुत अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली लिपि रही है । देवनागरी के बाद अगर हिंदी किसी लिपि में लिखी जाती रही है , तो वह मुंडी लिपि ही है ।

इस पुस्तक में मैंने मुंडी लिपि में हिंदी के कुछ दोहों को लिपिबद्ध करने का कार्य किया है। मुंडी लिपि की वर्णमाला भी दी है ताकि इस लिपि को इच्छुक व्यक्ति सीख सकें । अब जब मैंने मुंडी लिपि काफी सीख ली है और मैं चाहता हूँ कि देश में और भी बाकी लोग मुंडी लिपि में रुचि लें और धीरे-धीरे इसे सीख कर अपने जीवन में उपयोग में लाएँ , तब मुझे यह प्रतीत हुआ कि अब मुझे इस लिपि में कुछ काव्य रचनाएँ भी प्रस्तुत करनी चाहिए। मुंडी मुझे इस दृष्टि से उपयुक्त भी लगी । मात्राओं के उचित प्रयोग के कारण दोहों की भाषा के संप्रेषण में कोई कमी नजर नहीं आ रही है ।

यह एक प्रयोग है और मैं आशा करता हूँ कि यह जो पुस्तक मैंने “बहीखाता” नाम से दोहा संग्रह की निकाली है , इसे हिंदी जगत में पर्याप्त स्वीकृति प्राप्त होगी।
————————————————
————————————————
3)
मुंडी लिपि
———————————–
मुंडी लिपि मैंने छात्रावस्था में सीखी थी। न तो किसी ने मुझे प्रेरित किया और न ही सीखने की मेरी कोई मजबूरी थी । लेकिन फिर भी हमारी दुकान पर क्योंकि सारा बहीखाते का काम मुंडी में ही होता था, अतः मेरी रुचि हुई और मैंने एक- एक अक्षर को वह मुंडी में तथा देवनागरी में किस प्रकार अंतर के साथ लिखा जाता है ,सीखा ।
बाकी अक्षर तो अब भूल गया, लेकिन मुंडी में अपना नाम लिखना अभी तक याद है । मुंडी में पुराने जमाने से ही व्यापारियों के बही खातों में काम होता था लेकिन अब शायद ही किसी की दुकान पर मुंडी का प्रयोग हो रहा होगा। कारण यह है कि नई पीढ़ी इस लिपि से पूरी तरह अनभिज्ञ है। उसने या तो हिंदी की देवनागरी लिपि को अपना लिया है या फिर अंग्रेजी में बहीखाते लिखे जाने का कार्य भी शुरू होने लगा है।
मुंडी लिपि व्यापारिक बही खातों की सैकड़ों वर्ष पुरानी लिपि मानी जाती है। इस लिपि में सबसे बड़ी खूबी यह है कि धाराप्रवाह बहुत तेजी के साथ लिखने का काम हो जाता है ।
इसमें देवनागरी लिपि के समान शब्दों के साथ क्रिया-सूचक मात्राएँ नहीं लगानी पड़तीं। यह एक गुण भी है और मुंडी का दोष भी है। गुण यह है कि इससे समय बचता है और लिखने का कार्य तेजी से हो जाता है मगर दोष यह है कि अनुमान लगाकर शब्दों को पढ़ना पड़ता है। यह देखना पड़ता है कि किस संदर्भ में हम शब्दों को पढ़ रहे हैं । फिर उन संदर्भों को ध्यान में रखते हुए उस शब्द के अर्थ तक पहुँचना होता है ।
व्यापारिक कार्यों में संदर्भ जाने- पहचाने होते हैं । अतः गलती की गुंजाइश नहीं होती। जहाँ तक व्यक्तियों के नाम , जाति तथा गाँव आदि को बताने वाले शब्दों की पहचान का प्रश्न है , वह सब खूब परिचित रहते हैं । अतः उनमें किसी गलतफहमी की गुंजाइश नहीं होती । इसीलिए व्यापारिक कार्यों में मुंडी लिपि का प्रयोग खूब सफल रहा है । संक्षिप्त व्यापारिक प्रयोग के दायरे में मुंडी लिपि खूब चली ।
तथापि चिट्ठियाँ लिखने अथवा कहानी ,कविताएँ लिखने या लेख आदि मुंडी लिपि में लिखे जाने के कार्य में मेरे ख्याल से कोई प्रयोग देखने में नहीं आया होगा । मुझे ऐसी किसी भी पुस्तक की जानकारी नहीं है ,जो मुंडी लिपि में हिंदी में लिखी गई हो । अतः मुंडी केवल बहीखाते तक सीमित लिपि कही जा सकती है।
नई पीढ़ी क्योंकि मुंडी लिपि को नहीं समझ पाती, इसलिए पुरानी पीढ़ी के लोगों ने अपने बहीखातों को देवनागरी लिपि में परिवर्तित कर लिया था। स्वयं हमारी दुकान पर ही जब 1984 के आसपास मुनीम जी की मृत्यु हुई और उसके बाद पिताजी ने बहीखातों को उतारा तब उन्होंने मुंडी के स्थान पर देवनागरी लिपि को अपना लिया। इस तरह एक सुदीर्घ व्यापारिक परंपरा में मुंडी लिपि की विदाई हो गई।
————————————————
लेखक:रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज)
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 761 5451
ईमेल raviprakashsarraf@gmail.com

1 Like · 2196 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

"नाना पाटेकर का डायलॉग सच होता दिख रहा है"
शेखर सिंह
डर हक़ीक़त में कुछ नहीं होता ।
डर हक़ीक़त में कुछ नहीं होता ।
Dr fauzia Naseem shad
परिचर्चा (शिक्षक दिवस, 5 सितंबर पर विशेष)
परिचर्चा (शिक्षक दिवस, 5 सितंबर पर विशेष)
डॉ. उमेशचन्द्र सिरसवारी
मुक्तक
मुक्तक
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
आओ पास पास बैठें
आओ पास पास बैठें
surenderpal vaidya
श्रीमद भागवत कथा व्यास साध्वी श्वेतिमा माधव प्रिया गोरखपुर
श्रीमद भागवत कथा व्यास साध्वी श्वेतिमा माधव प्रिया गोरखपुर
Dr Nisha Agrawal
कागज ए ज़िंदगी............एक सोच
कागज ए ज़िंदगी............एक सोच
Neeraj Agarwal
"सोचिए जरा"
Dr. Kishan tandon kranti
शंकरलाल द्विवेदी द्वारा लिखित मुक्तक काव्य।
शंकरलाल द्विवेदी द्वारा लिखित मुक्तक काव्य।
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
तेरी याद में
तेरी याद में
Chitra Bisht
*दही खाने के 15 अद्भुत चमत्कारी अमृतमयी फायदे...*
*दही खाने के 15 अद्भुत चमत्कारी अमृतमयी फायदे...*
Rituraj shivem verma
बेवकूफ
बेवकूफ
Tarkeshwari 'sudhi'
अधिकारों का प्रयोग करके
अधिकारों का प्रयोग करके
Kavita Chouhan
इंतजार युग बीत रहा
इंतजार युग बीत रहा
Sandeep Pande
थोड़ी है
थोड़ी है
Dr MusafiR BaithA
बाल कविता: मोटर कार
बाल कविता: मोटर कार
Rajesh Kumar Arjun
एक चंचल,बिंदास सी छवि थी वो
एक चंचल,बिंदास सी छवि थी वो
Vaishaligoel
3147.*पूर्णिका*
3147.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*शादी में है भीड़ को, प्रीतिभोज से काम (हास्य कुंडलिया)*
*शादी में है भीड़ को, प्रीतिभोज से काम (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
रखकर हाशिए पर हम हमेशा ही पढ़े गए
रखकर हाशिए पर हम हमेशा ही पढ़े गए
Shweta Soni
लेकिन मैं तो जरूर लिखता हूँ
लेकिन मैं तो जरूर लिखता हूँ
gurudeenverma198
नदी तट पर मैं आवारा....!
नदी तट पर मैं आवारा....!
VEDANTA PATEL
ग़ज़ल,,,,बच्चे शोर मचाते दिखते 🌹
ग़ज़ल,,,,बच्चे शोर मचाते दिखते 🌹
Neelofar Khan
आज तो मेरी हँसी ही नही रूकी
आज तो मेरी हँसी ही नही रूकी
MEENU SHARMA
#तेवरी
#तेवरी
*प्रणय*
ज्वालामुखी बुझता नहीं ....
ज्वालामुखी बुझता नहीं ....
TAMANNA BILASPURI
"अक्सर बहुत जल्दी कर देता हूंँ ll
पूर्वार्थ
मेरी माँ
मेरी माँ "हिंदी" अति आहत
Rekha Sharma "मंजुलाहृदय"
चुल्लू भर पानी में
चुल्लू भर पानी में
Satish Srijan
Loading...