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14 Dec 2021 · 1 min read

स्त्री वेदनांचे स्वर

काल अंधारात पहाटे शेजारच्या बायकांचा रडण्याचा आवाज आला.
कौटुंबिक हिंसाचाराने छळलेल्या गृहिणीच्या व्यथेचा तो आवाज होता,
की मुलगा आणि सून यांच्याकडून दुर्लक्षित झालेल्या आईच्या दुखावलेल्या हृदयाचा आवाज होता,
किंवा मुलीच्या अपेक्षित आकांक्षा आणि आकांक्षा दडपल्या गेल्याने भावनांचा टोन होता,
मी संवेदनाहीन मूक प्रेक्षक बनून समाजाच्या मर्यादेत जखडलेल्या स्त्रीच्या विडंबनाकडे पाहत राहिलो.
संस्कार,संवेदनशीलता,सद्भावना,सहकार्य,सगळं मला शब्दांपुरतं मर्यादित वाटत होतं,
माझ्या अस्तित्वाच्या नगण्य भावनेने हताश होऊन, असहाय होऊन मी हे सर्व पाहत राहिलो.

Language: Marathi
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