गीतिका छंद- दिगंबरी
प्रदत्त मापनी- 1222 1222 1222 122
समांत –नाये, अपदांत…
सुहाना सा सफर में हो …चलो मंजिल तलाशें
कभी कविता रचो जो तुम, तभी गाकर सुनायें ।।
हजारों चाहतों में हो , अमल सा तुम बना कर ।
दिखेंगी रोशनी सी जब , अँधेरे भी हटाये ।।
सजाना तुम सलीके से,चमन के आशिया को।
निभाना साथ मेरा तुम.., सुखी जीवन बनाये ।।
दुखों की आंधियों से भी,.. कभी हमको न डरना ।
रहें हम साथ ऐसे ही,…सदा ही प्रेम लाये ।।
लगे जब भी शिकायत सी .. निभा कर ही बढ़ाये
थमा हो राह मत घबरा.. डरा सा मन न पाये ।।
स्वरचित –रेखा मोहन ७/१०/२१ पंजाब