Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Jul 2021 · 4 min read

वीर-सावित्री

“वीर-सावित्री”

“लेफ्टीनेंट आँखें खोलिए…आँखें खोलिए …” डा० सावित्री गंभीर रूप से घायल लेफ्टीनेंट ‘वीर प्रताप सिंह’ को स्ट्रेचर पर तेजी से आॅप्रेशन थ्रेटर की तरफ ले जाते हुए लगभग चीख रही थीं।

स्ट्रेचर पर वीर प्रताप सिंह बेसुध अवस्था में पड़े हुए थे और शरीर से बुरी तरह से खून बह रहा था।

डा० सावित्री रोते हुए बोलीं,

“लेफ्टिनेंट …प्लीज आँखें खोलिए।”

“डा० सावित्री कंट्रेाल योरसेल्फ …हिम्मत रखिए।” डा० मलिक स्ट्रेचर को सहारा देते हुए बोले।

“प्रेपेयर फाॅर आप्रेशन, ही इज वेरी क्रीटकल” डा० मलिक आॅप्रेशन थ्रेटर में प्रवेश करते ही बोले।

“वी……र …तुम्हे कुछ नहीं होगा …म…म…मैं…”, इस अधूरे वाक्य के साथ डा० सावित्री का सब्र का बांध टूट गया और आँसुओं की धारा बह निकली।

“सावित्री हिम्मत रखो…तुम ऐसे हताश नहीं हो सकती…बी ब्रेव” डा० मलिक सावित्री को सहारा देकर कुर्सी पर बैठाते हुए बोले।

डा० सावित्री सुबकते हुए बोलीं, “डा० प्लीज आप वीर को देखिए…मैं ठीक हूँ …आई नीड सम टाइम…”

डा० मलिक वीर की तरफ चले गए और डा० सावित्री फिर से सुबकने लगीं।

“मैडम के ऊपर तो आफत का पहाड़ टूट पड़ा” एक नर्स फुसफुसाई।

“हाँ सच में , अभी कल ही तो दोनों की शादी की पहली सालगिरह थी…दोनों कितने खुश थे और आज पुलवामा के इस आतंकवादी घटना ने साहब का यह हाल कर दिया, बेचारी मैडम।” दूसरी नर्स ने संवेदना व्यक्त की।

शून्य में खोई डा० सावित्री की आँखों से अश्रुबिंदु झरे जा रहे थे और उन अश्रुबिंदुओं में वीर के संग बिताए हर एक लम्हे प्रतिबिम्बित होने लगे और देखते-देखते स्मृतिओं का द्वार खुल गया। स्मृतियों में वीर की खिलखिलाती हुई उन्मुक्त हंसी कौंधी,

“हाँ…हाँ…हाँ …तुम कैसी डाक्टर हो …कितना डरती हो?” सावित्री का घबराया हुआ चेहरा देखकर वीर खिलखिला उठा।

“तुम मेरी जान ही लेकर मानोगे।” वीर के सीने से चिपकते हुए सावित्री बोली।

“अरे पागल देखो मुझे कुछ नहीं हुआ है , मैं बिलकुल ठीक हूँ, वो तो तुम्हें बुलाने के लिए एक्सीडेंट का बहाना बनाया था।” वीर सावित्री के माथे को चूमते हुए बोला।

“देखना तुम्हारे इन्ही झूठे बहानों की वजह से मेरी जान जायेगी।” डबडबाई आँखो से वीर को देखते हुए सावित्री बोली।

“अरे मेरी जान की जान कौन ले सकता है ? तुम्हारी जान लेने से पहले उसे मेरी जान लेनी होगी और किसमें इतना दम है जो वीर से टकराए” वीर ने सावित्री की आँखों में आँखें डालकर शरारती अंदाज में कहा।

“फिर तुम क्यों ऐसा झूठ बोलते हो?” सावित्री ने शिकायती लहजे में कहा।

“झूठ ना बोलूं तो क्या करूं…तुम काम में इतना व्यस्त रहती हो कि मुझे समय ही नहीं देती हो।” वीर ने प्रति उत्तर दिया।

“जाओ अब मैं तुमसे बात नहीं करूंगी” वीर को हाथ से हटाते हुए सावित्री बोली।

“अच्छा! अगर सच में मुझे कुछ हो जाए तब भी नहीं ?” वीर गम्भीर होते हुए बोला।

“खबरदार जो दुबारा ऐसी बात मुँह से निकाली तो” वीर के मुँह को हाथ से बंद करते हुए सावित्री बोली।

“कितना प्यार करती हो मुझसे?” सावित्री के हाथ को मुँह से हटाते हुए वीर ने पूछा।

“इतना कि यमराज से भी तुम्हें वापस ले आऊंगी” सावित्री ने वीर की आँखों में देखते हुए कहा।

इधर सावित्री स्मृतियों में खोई थी और उधर आॅप्रेशन थ्रेटर में डा० मलिक सहयोगी डाक्टरों से राय मशविरा करते हुए, “वीर इज वेरी क्रिटकल …तुरन्त आॅप्रेशन करना होगा और हमारे पास बेस्ट सर्जन डा० सावित्री ही हैं जोकि ये आॅप्रेशन कर सकती हैं लेकिन वे इस हालत में नहीं हैं कि आॅप्रेशन कर सकें …शी इज इन ट्रामा…सो वी हैव टू अरेंज ऐनअदर सर्जन ऐज सून ऐज पाॅसिबल।”

“बट सर , पुलवामा में कोई दूसरा सर्जन नहीं है और जो बाहर से आयेगा उसे कम से कम तीन से चार घंटे आने में लग जायेंगे…हमारे पास इतना समय नहीं है” डा० अनुज ने समस्या बताई।

“लेकिन मैं सावित्री को कैसे एग्री करूँ ? मैं मानता हूँ कि शी इज बेस्ट सर्जन वी हैव लेकिन उसका हाल देखो शी इज इन ट्रामा और वैसे भी बड़े से बड़े सर्जन के हाथ काँप जाते हैं अपनों के आॅप्रेशन करने में…यहाँ तो वीर है …उसका पति …उसका एकमात्र सहारा…मुझे नहीं लगता शी कैन हैंडिल दिस…” डा० मलिक समझाते हुए बोले।

“लेकिन डाक्टर …” डा० अनुज की बात के बीच में ही सावित्री की गम्भीर आवाज कौंधी

“मैं करूंगी आॅप्रेशन।”

सभी पलटकर देखते हैं तो डा० सावित्री चेहरे पर दृढ़निश्चयता लिए सामने खड़ी हैं।

“लेकिन…” डा० मलिक कुछ कहना चाहते थे परन्तु डा० सावित्री ने अनसुना करते हुए सहयोगी स्टाफ को निर्देश दिया “दरवाजा बंद करो और प्री आॅप्रेशन प्रोसीजर स्टार्ट करो।”

आॅप्रेशन थ्रेटर का दरवाजा बंद हो चुका था और लाल बत्ती जल उठी थी।

तीन दिन बाद…

“वीर आँखें खोलों…” वीर के कानों में आवाज पड़ी । वीर ने धीरे- धीरे आँखें खोली, सामने धुंधली आकृति नज़र आई , धीरे -धीरे आकृति का चेहरा साफ होता गया और सामने थीं डा० सावित्री जो वीर के सर पर हाथ फेर रही थी। जैसे ही वीर ने आँखें खोलीं सावित्री के आँख से अश्रुबिंदु वीर की गाल पर टपक गए… टप्…टप्। वीर बोलना चाह रहा था लेकिन सावित्री ने मुँह पर ऊंगली रख दी । दोनों एक-दूसरे को डबडबाई आँखों से देखने लगे और आँखों ही आँखों में होने लगीं कभी ना खत्म होने वाली बातें।

********

रचनाकार – रूपेश श्रीवास्तव “काफ़िर”

स्थान – लखनऊ (उ०प्र०)भारत

3 Likes · 7 Comments · 718 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

" REMINISCENCES OF A RED-LETTER DAY "
DrLakshman Jha Parimal
मैं उनकी ज़फाएं सहे जा रहा हूॅं।
मैं उनकी ज़फाएं सहे जा रहा हूॅं।
सत्य कुमार प्रेमी
"दिल दे तो इस मिजाज का परवरदिगार दे, जो गम की घड़ी भी खुशी स
Harminder Kaur
कर (टैक्स) की अभिलाषा
कर (टैक्स) की अभिलाषा
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
बस तेरे होने से ही मुझमें नूर है,
बस तेरे होने से ही मुझमें नूर है,
Kanchan Alok Malu
मंजर
मंजर
Divya Trivedi
गजल
गजल
नूरफातिमा खातून नूरी
देश की वसुंधरा पुकारती
देश की वसुंधरा पुकारती
कार्तिक नितिन शर्मा
सताएं  लाख  परेशानियां क्यों न जीवन के सफर में,
सताएं लाख परेशानियां क्यों न जीवन के सफर में,
Madhu Gupta "अपराजिता"
এটা আনন্দ
এটা আনন্দ
Otteri Selvakumar
उकसा रहे हो
उकसा रहे हो
विनोद सिल्ला
आज के समय में हर व्यक्ति अपनी पहचान के लिए संघर्षशील है।
आज के समय में हर व्यक्ति अपनी पहचान के लिए संघर्षशील है।
Annu Gurjar
*आदर्श युवा की पहचान*
*आदर्श युवा की पहचान*
Dushyant Kumar
हम सब भी फूलों की तरह कितने बे - बस होते हैं ,
हम सब भी फूलों की तरह कितने बे - बस होते हैं ,
Neelofar Khan
राम हैं क्या ?
राम हैं क्या ?
ललकार भारद्वाज
नारी शक्ति 2.0
नारी शक्ति 2.0
Abhishek Soni
प्रेम वो नहीं
प्रेम वो नहीं
हिमांशु Kulshrestha
..
..
*प्रणय प्रभात*
रिश्ते-नाते
रिश्ते-नाते
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
विश्वासघात से आघात,
विश्वासघात से आघात,
लक्ष्मी सिंह
"We are a generation where alcohol is turned into cold drink
पूर्वार्थ
*कवि बनूँ या रहूँ गवैया*
*कवि बनूँ या रहूँ गवैया*
Mukta Rashmi
प्यासी कली
प्यासी कली
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
हिन्दू -हिन्दू सब कहें,
हिन्दू -हिन्दू सब कहें,
शेखर सिंह
वसंत आगमन
वसंत आगमन
SURYA PRAKASH SHARMA
*
*"अवध के राम"*
Shashi kala vyas
कर क्षमा सब भूल मैं छूता चरण
कर क्षमा सब भूल मैं छूता चरण
Basant Bhagawan Roy
"मैं आज़ाद हो गया"
Lohit Tamta
गीत पिरोते जाते हैं
गीत पिरोते जाते हैं
दीपक झा रुद्रा
तुम बदल जाओगी।
तुम बदल जाओगी।
Rj Anand Prajapati
Loading...