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8 Mar 2021 · 4 min read

गंगावतरण का कथासार संक्षेप में प्रस्तुत करें ।

LNNU , B.A,B.SC,B.COM , Non-Hindi ( Part – 2 )
पाषाणी , गंगावतरण , भगीरथ , हिन्दी
Pashani , Gangavataran , Bhagiratha

गंगावतरण का कथासार संक्षेप में प्रस्तुत करें ।

गंगावतरण की कथा पौराणिक है। देवराज इन्द्र की प्ररेणा से भगीरथ के पूर्वजों ने मुनिश्रेष्ठ कपिल को अपमानित करना चाहा किन्तु महर्षि कपिल के तपोबल के ताप में उनका अस्तित्व ही दग्ध (जल गया) हो गया और आश्चर्य यह कि भागीरथ के पूर्वजों का भस्मावशेष (राख के रूप में बचा अंश)
शीतल ही नहीं हो पा रहा था । भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार करने के लिए तप का सहारा लिया ‌। उनकी तपोनिष्ठा ( तप करने की भाव ) के परिणामस्वरूप ही स्वर्ग की गंगा पृथ्वी पर उतरी । इस विषय में किसी ने ठीक ही कहा है :-

भगीरथ को अपने पूर्वजों को करना रहा उद्धार ,
तब किया उन्होंने तप विद्या को स्वीकार ।
लगा रहा तप में, छोड़ कर ये सुख, सुविधा, संसार ,
तब पूर्वजों को उद्धार की और बनी गंगा
पावन देश धरती की हार ।।

गंगावतरण भगीरथ की तपोनिष्ठा के यश:कल्प की कथा गाथा है । उनके यश की यह गाथा तीन दृश्यों में बांटा है । प्रथम दृश्य भागीरथ के उग्रतप के निश्चय से होता है । पितरों के उद्धारार्थ तप के अतिरिक्त ( अलाव ) उनके समक्ष (सामने) कोई दूसरा विकल्प नहीं है ‌। अतः उनका निश्चय है –

मैं करूँगा तप , महातप मौन –
ऊर्ध्व बाहु , कनिष्ठिका भर टेक-
भूमि पर , कंपित न हूंगा नेक !

अपने पूर्व निश्चय को वह गंगोत्री के पुण्य-तीर्थ में कर्मणा चरितार्थ है । निराहार तपस्या में वह निरत है । भगीरथ के तप की ख्याति चतुर्दिक ( चारों तरफ ) फैली हुई है ‌। भगीरथ के तप से सूर्य , चन्द्र, नक्षत्र सभी प्रकंपित है । इन्द्र को यह सूचना नारद से उपलब्ध होती है। इन्द्र भगीरथ के उग्रतप से अत्यंत चिन्तित हो उठते हैं । परन्तु उन्हें उर्वशी, रंभा जैसी अप्सराओं का भरोसा है । वह अतः उर्वशी और रंभा को भगीरथ की तपस्या के स्खलनार्थ पृथ्वी पर भेजते हैं । यह दृश्य अपनी प्रस्तावना में भगीरथ की चारित्रिक- दृढ़ता एवं इन्द्र के षड्यंत्र निश्चय से संपृक्त है ।

द्वितीय दृश्य का सूत्रपात अत्यंत मादक वातावरण से होता है ‌। आधी रात का समय है , दूध की धोयी चांदनी दिक् – दिगन्त में छितराई है । उन्मादक वायु का शीतल प्रवाह वातावरण में तंद्रिलता बिखेर रहा है । नीरव शांति का सन्नाटा चतुर्दिक व्याप्त है । ऐसे कामोद्दीपक वातावरण में भी वह स्तूपवत् खड़े हैं । वे वातावरण में सर्वथा अलिप्त हैं । तपस्या में निर्बाध निरत भगीरथ संकल्प-दृढ़ता के उत्कर्ष में अधीष्ठित है ‌। इसीलिए अप्सराओं सम्मोहन भी उनके लिए निरर्थक ही सिद्ध होता है । रंभा और उर्वशी के सम्मोहन से भगीरथ छले नहीं जाते । वे अपनी तपस्या में शान्त भाव से लीन हैं । अप्सराओं के समक्ष भगीरथ की तपस्या विचलित नहीं होती । अप्सराओं का कामोद्दीपन भगीरथ को थोड़ा भी प्रभावित नहीं कर पाता । वे निष्काम ही बने रहते हैं । धरती की तप : साधना के समक्ष देवलोक का दंभ धूमिल हो जाता है ।

भगीरथ की तृप्तकाम निष्कामता तृतीय दृश्य में पुरस्कृत होती है । अनेक वर्ष बीत गए किन्तु तपोनिष्ट भगीरथ का मस्तक विचलित नहीं हुआ ‌ । तन शिराओं का बन गया, पर मनोरथ इष्ट-सिद्धि के पूर्व कभी क्लान्त नहीं हुआ। उनके प्रबल संकल्प के सामने ब्रह्मा का कमलासन हिल उठता है । वे ‘ब्रह्मब्रूहि’ के आश्वासन के साथ भगीरथ के समक्ष प्रस्तुत होते है । वे भगीरथ को स्वर्ग का प्रलोभन देते है किन्तु स्वर्ग – सुख के प्रलोभन से वह छले नहीं जाते। अपने पूर्वजों के उद्धारार्थ वह पृथ्वी पर गंगाअवतरण की याचना करते है । ब्रह्मा कर्मफल की दुहाई देते हुए यह प्रस्तावित करते है कि भगीरथ के पुण्यकर्म उनके पितरों के उद्धार में तो असम्भावना ही व्यक्त करते हैं। भगीरथ ब्रह्मा के कर्मज संस्कार को निरर्थक सिद्ध करते है। कहते हैं –

मैं उतारूँ पार औरों को न जो ,
धिक् तपस्या , नियम ! तब सब ढोंग तो ।

भगीरथ के अनुसार सूर्य की व्यापकता केवल उसी तक सीमित नहीं रहती , वह सभी को प्रकाश देती है । कर्म का शीतल प्रभाव चाँदनी के रूप में सबको स्निग्धता में डुबो देता है। फिर भगीरथ की तपस्या पितरों को भी प्रभावित नहीं कर सकेंगी क्या ? अतः उनकी कामना है –

मेरे पितर क्या ? भस्म ही उनका अरे , अब शेष ,
उनके बहाने हो हमारा पतित पावन देश ।

पूर्वजों का उद्धार तो एक बहाना है ‌ । भगीरथ की कामना सम्पूर्ण देश की पावनता से संपृक्त है । ब्रह्मा भगीरथ की इस मूल्यजीविता पर ही रीझते है। प्रसन्नता के आह्लाद में वह कहते है-

कुल कमल राजा भगीरथ धन्य
स्वार्थ – साधक स्वजन होते अन्य ।।
मानता , जग कर्म-त़त्र – प्रधान ,
पर भगीरथ असामान्य महान् ।
लोक-मंगल के लिए प्रण ठान –
तप इन्होंने है किया , यह मान-
हम, इन्हें देंगे अतुल वरदान ,
ये मनुज उत्थान के प्रतिमान ।

ब्रह्मा की धारणा में भगीरथ ‘मनुज उत्थान के प्रतिमान’ की सिद्धि अर्जित करते है । उनकी कामना है कि कीर्ति-गाथा गगन चढ़े ऊपर, सबसे ऊपर फहरे , लहरे । इस क्षण देवाधिदेव शंकर का आशीष ( आशीर्वाद ) भी भगीरथ को सुलभ होता है। भगीरथ का शिवधर्मातप तृप्तकाम होता है। स्वर्ग की गंगा धरती पर अवतरित होती है ।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा , बिहार
बी.ए, बी.एस.सी , बी.कॉम , नोन हिन्दी , द्वितीय वर्ष

Lalit Narayan Mithila University
Darbhanga, Bihar

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धरती की हार , जीत और हार नहीं जैसे सोने की हार , चांदी का हार
पाषाणी :- पत्थर

संजीवनी :- आरसी प्रसाद सिंह जी

03/03/2021 , बुधवार , कविता :- 19(24)

रोशन कुमार झा , Roshan Kumar Jha , রোশন কুমার ঝা
रामकृष्ण महाविद्यालय , मधुबनी , बिहार
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार
साहित्य संगम संस्थान , पश्चिम बंगाल इकाई (सचिव)
मोबाइल / व्हाट्सएप , Mobile & WhatsApp no :- 6290640716
roshanjha9997@gmail.com
Service :- 24×7
सेवा :- 24×7

Language: Hindi
Tag: लेख
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