तुम्हारे लिए
सुनों..
ना तुम
बहुत बाते करती हूं मैं
अक्सर तुमसे
न जाने क्यों
सामने होने पर बोल
नही पाती हूं
पर अपनी लेखनी से
अपनी कविताओं में
बात कर लेती हूँ
अपने मन के
सारे भाव
ओर सोचती हूं तुम
समझ जाते हो
मेरे जज्बातों को
मेरे शब्दों से
तुम चुप रह जाते हो
तुम्हारे जाने पर
मैं ले बैठती लेखनी
ओर लिख डालती हूँ
भाव अपने
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारे लिए