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2 May 2024 · 1 min read

ज़बान

ज़बान का जो खरा नहीं है!
यक़ीन उसपे ज़रा नहीं है!!

लगे असंभव उसे हराना!
जो आंधियों से डरा नहीं है!!

समझ सके ना किसी की पीड़ा!
के’ ज़ख्म जिनका हरा नहीं है!!

लहू हमारा लो’ पी रहा वो!
गुनाह से दिल भरा नहीं है!!

रहे मुसाफ़िर सदा शिखर पे!
ज़मीर जिसका मरा नहीं है!!

धर्मेंद्र अरोड़ा”मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051

Language: Hindi
48 Views

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