आज़ाद गज़ल
ये कैसी हवा आज बहने लगी है
मुहब्बत भी अब यार छलने लगी है ।
जमाना मुझे छोड़ देगा अकेला
उसे मेरी गजलें जो खलने लगी है ।
कभी खुश मुझे देख सकती नहीं वो
मेरी जिन्दगी मुझसे जलने लगी है ।
गरीबी मुझे रास अब आ गयी है
वो नजरें करम हम पे करने लगी है ।
खफा हो गये हैं तेरे ख्वाब तुझसे
अजय तेरी रातें बदलने लगी हैं ।
-अजय प्रसाद