आज़ाद गज़ल
जितना आपने समझा उतना वफादार मै नहीं हूँ
जो नेमत आपने बख्शा उसका हक़दार मै नहीं हूँ ।
एक पतझड़ का मौसम,एक सूखा हूआ पत्ता हूँ
जो खिला सके कोई फूल वो बहार मै नहीं हूँ ।
एक ठूंठा सा दरख्त, एक उज़ड़ा हूआ मकां हूँ
जहाँ पा सको दिल ए सकुन वो मजार मै नहीं हूँ ।
एक बेबसी का नगमा,एक तल्खियों का मजमा हूँ
जिसे पाने के लिए दिल तरसे वो करार मै नहीं हूँ ।
एक अधुरी सी कहानी ,एक महरूम सी जवानी हूँ
ले जाए जो नाव किनारे तक वो पतबार मै नहीं हूँ ।
एक बंजर जमीं हूँ,किसी के आँखों की नमी हूँ
जिसके साये में लम्हे गुजारो वो दीवार मै नहीं हूँ ।
-अजय प्रसाद