आज़ाद गज़ल
सपने टूटते हैं बड़ी खामोशी से
अपने लूटते हैं बड़ी खामोशी से ।
ज़र,जोरू,ज़मीन की खातीर ही
रिश्ते छूटते हैं बड़ी खामोशी से ।
जिनसे करो उम्मीद मनाने की
वोही रूठते हैं बड़ी खामोशी से ।
कुदरत का कहर,वक़्त की मार
हालात कूटते हैं बड़ी खामोशी से ।
समय के साथ ही हाथों से हाथ
अक़्सर छूटते हैं बड़ी खामोशी से ।
-अजय प्रसाद