क्या हो तुम मेरे लिए (कविता)
मैंने एक दिन खुद से सवाल किया —
अपनों का साथ भी बड़ा विचित्र हैं,
मिथकीय/काल्पनिक/गप कथाओं में अक्सर तर्क की रक्षा नहीं हो पात
दिवाली के दिन सुरन की सब्जी खाना क्यों अनिवार्य है? मेरे दाद
अब मुझे यूं ही चलते जाना है: गज़ल
सिर्फ कलैंडर ही बदला है, किंतु न बदला हाल।।
किसने कहा, आसान था हमारे 'हम' से 'तेरा' और 'मेरा' हो जाना
स्वर्गीय लक्ष्मी नारायण पांडेय निर्झर की पुस्तक 'सुरसरि गंगे
यु निगाहों का निगाहों से,
मौहब्बत क्या है? क्या किसी को पाने की चाहत, या फिर पाकर उसे