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21 Feb 2024 · 1 min read

तुम

कि बहुत कम था
तुम्हारी संवेदनाओं का विस्तार
मेरी मजबूरियों को तुमने
पहना दिया था बेेरुखी का जामा ।
कि फैसले लेने से पहले
जानी होती वजहें कुछ
किस रिश्ते की बात करते हो तुम
कि छोड़ दिए तुमने सारे हक अपने
अपने आप
परंतु फिर कैसे होता गुरूर चकनाचूर
कैसे होता प्रारब्ध में लिखा हुआ पूरा
नहीं है अफसोस
कि कई बार संभाला है मैंने
लौटते तुम्हारे कदमों को रोका है मैंने
और तुम
एक बार में ही हो गए आहत
मैं भी तो हुई
बहुत बार हुई
हर बार हुई
कि जब भी तुम ठहरे
या रुके थे तुम्हारे कदम जब भी
चलो मंजूर है जो हुआ
सफर था जीवन
सफर है जीवन
तलाश लेगा अपनी राहें
खुद ब खुद ।

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