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27 Jul 2020 · 1 min read

आज़ाद गज़ल

यारों मैं भी एक फ़ेसबुकिया साहित्यकार हूँ
ये और बात मैं लिखता घटिया और बेकार हूँ ।
रहता हूँ मैं तलाश में दिन-रात मौज़ुआत के
रख देता रोज़ उड़ेल पोस्ट पे मन के उदगार हूँ ।
नहीं चाहिये मुझे शोहरत और तमगे बुलंदी के
मैं तो खुश हुआ पाकर आपका तिरस्कार हूँ ।
मेरी शायरी किसी तारीफ़ की है मोहताज नहीं
बस हक़ीक़त वयां करने के लिए मैं बेक़रार हूं ।
कभी न कभी कोई न कोई तो सराहेगा मुझे भी
बस उसी बेसब्र घड़ी, का अजय मैं इन्तज़ार हूँ
-अजय प्रसाद

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