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25 Jul 2020 · 1 min read

आज़ाद गज़ल

लैला,मजनू,सोनी,महिवाल , शीरी या फरहाद नही
आशिक़ी मे हमने ली किसी से कभी इमदाद नही ।

शायद लोगो को बेहद कड़वी लगती है मेरी गजलें
सच से रुबरु कराते मेरे शेरों को मिलती दाद नही ।

लिखूंगा वही जो जायज है इस दूनियाँ के लिये
मेरी शायरी अभी हुई हक़ीक़त से आजाद नही ।

न महफिल-ए-ग़ज़ल,न मुशायरे की ही दावतें
मेरी शायरीएबुलबुल की सुनी क्यूँ फरियाद नही

मतला,मकता,काफिया, रदीफ़ ओ बहर हैं खफा
क्यूँ इन सब को हुस्नो ईश्क़ पे किया बर्बाद नही ।
-अजय प्रसाद

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