लघुकथा ‘कल की आहट’
दीपक अपने दादाजी के साथ सलाना नतीज़ा लेने स्कूल गया| स्कूल में बच्चे अपना रिजल्ट कार्ड ले और नई किताबें कापियाँ ले बहुत खुश हो रहे थे| माता-पिता भी अध्यापक से पूछते, “अब हमें बच्चे की कौन-कौन सी बातों पर ध्यान देना होगा| बच्चे को कौन से विषय पर विशेष ध्यान देना है|” दीपक और उसके दादाजी भी उस कमरें में पहुँच गए और नमस्कार किया| दादा जी ने पूछा, “दीपक का रिज़ल्ट कार्ड और किताबे-कापियां लेनी हैं|” अध्यापक ने बच्चे की बहुत प्रशंसा की और कक्षा में द्वितीय आने की बधाई दी| दादाजी बहुत खुश हो बोले, “अच्छा अगर बच्चा पढ़ जाये हम तो मजदूरी कर ही गुजारा कर रहें हैं, ये अफसर बन जाये|” दीपक हाथ आगे कर बोला, “मै डाक्टर बनूंगा दादाजी!” दादा की आँखों में कल की खुशी के सपनें तैरने लगे और वो बोला, “ये सब तेरी मेहनत और इन अध्यापकों के कारण ही होगा, हम सब तो अनपढ़ हैं, ये सब क्या जाने|” दादाजी फिर अगली कलास की किताबें मांगने लगे| अध्यापक ने किताबें ला सामने रख दी और बोली, “ग्यारह सौ रूपये दे दो|” दादा ने जेब टटोली एक पांच सौ का नौट और पचास के चार नोट निकाल सामने रख दिए और बोला, “मेरे पास तो यहीं पैसे हैं बाकी किश्तों में दे देंगें|” बज़ुर्ग का चेहरा पीला हो गया और छलकती आँखें लिये असहाय खड़ा था| अध्यापक उस बज़ुर्ग की टूटी हुई आस देख बस इतना बोली, “हम प्रिंसिपल साहिब से बात कर मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे|”
मौलिक और अप्रकाशित.
रेखा मोहन १८/१०/१९