कट्टरता
“कट्टरता” की बदलती परिभाषा: एक पुनर्विचार
मौजूदा दौर में “कट्टर” शब्द का एक नया संदर्भ उभरकर सामने आया है। राजनीति से लेकर सामाजिक विमर्श तक, इस शब्द को अक्सर नकारात्मक अर्थों में प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन वास्तव में, “कट्टर” का मूल अर्थ उतना नकारात्मक नहीं है, जितना इसे बना दिया गया है।
“कट्टर” शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है?
इसका शाब्दिक अर्थ है—”अपने मत या विश्वास पर दृढ़ रहने वाला व्यक्ति।” प्रसिद्ध दार्शनिक जॉर्ज संतायना के अनुसार, “जब लक्ष्य ही भुला दिया जाए, तब प्रयास को दोगुना कर देना कट्टरता है।” कट्टर व्यक्ति अपने विचारों का कठोरता से पालन करता है और अक्सर उससे भिन्न मतों को स्वीकार नहीं करता। सरल शब्दों में कहें, तो किसी भी धर्म, जाति, संगठन, राजनीतिक या सामाजिक विचारधारा के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रतिबद्धता ही कट्टरता है।
क्या कट्टरता हमेशा गलत होती है?
मैं किसी विशेष धर्म की बात नहीं कर रहा। मेरा मानना है कि सभी धर्म मूल रूप से एकता, भाईचारे, दया, करुणा, सहयोग और मानव सेवा की शिक्षा देते हैं। उनके मत अलग हो सकते हैं, लेकिन उनके मूल सिद्धांतों में असंख्य समानताएँ मिलती हैं।
लेकिन आज के दौर में यह परिभाषा विकृत की जा रही है। धर्म को अब केवल एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है। दुनिया में कोई भी धर्म मूलतः गलत नहीं है, लेकिन कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए उसमें बदलाव करते हैं, उसे तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं और दूसरों को गुमराह करने का काम करते हैं।
क्या कोई धर्म नफरत सिखाता है?
मुझे नहीं लगता कि कोई भी धर्म यह सिखाता हो कि—
किसी का दिल दुखाओ,
किसी की हत्या कर दो,
किसी को पीट-पीटकर मार डालो।
लेकिन दुख की बात है कि आज हमारे देश में सबसे अधिक उन्माद और वैमनस्य धर्म के नाम पर ही फैलाया जा रहा है। यह चिंताजनक है।
तो हमें किस प्रकार की कट्टरता की आवश्यकता है?
अगर कट्टरता का संबंध विचारों की दृढ़ता से है, तो हमें अपने राष्ट्र के प्रति कट्टर होना चाहिए, सामाजिक सद्भाव के प्रति कट्टर होना चाहिए, ईमानदारी, नैतिकता और सकारात्मक आचरण के प्रति कट्टर होना चाहिए। कट्टरता अगर विकास, शांति और आपसी भाईचारे के लिए हो, तो वही सकारात्मक कट्टरता होगी।
© अरशद रसूल