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21 Feb 2024 · 1 min read

उम्र  बस यूँ ही गुज़र रही है 

उम्र बस यूँ ही गुज़र रही है
सुन सुन यादों की
गोश-बर आवाज़

पर हर शाम जैसे हो
शामे-हिज्राँ पर
तसव्वुर में तो आज भी
और अय्यामे-गुल का ख़्वाब है

यादे-रफ्तगां का है ये आलम
हर शाम बज़्मे-तस्व्वुरात में
फ़ुसूने-नीमशब का होता है

रहता है इंतज़ार शायद
वो आ जाएँ ,
मशगूल हैं जो दयारे-गै़र में
बैठे खुद-सताई में

अतुल “कृष्ण”
———
गोश-बर आवाज़=आवाज़ पर कान लगाए हुए
शामे-हिज्राँ=विरह की शाम
तसव्वुर=कल्पना में,
अय्यामे-गुल=बहार के दिन,
यादे-रफ्तगां=पुरानी यादें,
बज़्मे-तस्व्वुरात=ख़्यालों की महफ़िल,
फ़ुसूने-नीमशब=आधीरात का जादू,
दयारे-गै़र=दूसरों की गली
खुद-सताई=खुद की प्रशंसा

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