क्यों लिखूं मैं तुमको?
क्यों लिखूं मैं तुमको?
क्यों लिखूं मैं तुमको,
जब हर लफ्ज़ में बस तुम ही हो?
हर साज़ की धुन में,
हर गीत की गुनगुनाहट में,
बस तुम्हारी ही सरगम बहती हो।
क्यों उकेरूं शब्दों में तुमको,
जब चाँदनी की चादर में तुम्हारा ही रूप झलके?
जब हवा की हर सरसराहट,
तेरी साँसों सी गुनगुनाए,
और सावन की बूंदें तेरा ही स्पर्श बन जाएं।
क्यों लिखूं मैं तुमको,
जब मेरी हर धड़कन तेरा नाम पुकारे?
जब मेरे ख्वाबों की हर गली,
तेरी यादों से गुलज़ार हो?
जब मेरे मन का हर कोना,
तेरे प्रेम का ही संसार हो?
मैं क्या कहूं,
क्या लिखूं,
जब मेरी हर भावना में,
सिर्फ़ “तुम” ही बसे हो।
©® डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद “