आज़ाद गज़ल
आसमां से गिर हम कर खजूर में अटकते हैं
शायद लोगों की नज़रों में बेहद खटकते हैं ।
मंज़िलों से तो रहती है अक़्सर गुरेज़ मुझको
बस बेखौफ आवारा सडकों पर भटकते हैं ।
सदीयों से समस्याओं का है समाधान कहाँ
आज भी न जाने कितने अधर में लटकते हैं ।
और क्या खून के आंसू तुम रुलाओगे भला
देख जहां की बिसंगतियाँ रोज़ ही गटकते हैं ।
ले आ गया अजय आज तेरे दर पर अल्लाह
क्यों न आज तेरे चौखट पे भी सर पटकते हैं ।
-अजय प्रसाद