आज़ाद गज़ल
मुझे तुमसे मुहब्बत न थी, न है, न होगी
खुद से ही वगावत ,न थी ,न है, न होगी ।
लाख करे कोशिश ये ज़माना मिटाने की
मगर उसकी हैसीयत न थी, न है ,न होगी ।
रोज़ बेचता रहता हूँ मैं अपने उसुलों को
जहां में इसकी जरूरत न थी,न है,न होगी ।
न सजदे में गये और न शिकवे किये ,मगर
खुदा से मेरी अदावत न थी, न है ,न होगी ।
हाँ किया है मेरा इस्तेमाल लोगों ने अक़्सर
पर मुझे किसी से नफरत,न थी,न है,न होगी
-अजय प्रसाद