आज़ाद गज़ल
रोज़ पढ़ता हूँ तुझे मैं अखबार की तरह
सुनता हूँ तेरी हर बात समाचार की तरह ।
तू मुझे देखे या न देखे ये तेरी मरज़ी है
मै तो देखता हूँ तुझे आखरी बार की तरह ।
कितनी आसानी से मुकर जाते हैं लोग
भूल जाते हैं वायदे नयी सरकार की तरह ।
ज़माना तरस रहा है देखने को वो ज़माना
जब रहते थे सब मिलकर परिवार की तरह ।
पड़ने लगें हैं दौरे तुम पे अजय पागलपन के
आज कल लिख रहे हो इमानदार की तरह ।
-अजय प्रसाद