Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
8 Jun 2019 · 1 min read

दरकिनार बरसात की

दिनांक 8/6/19

सूखी धरती
दरकते खेत
प्यासे पंछी
दरकिनार है
बरसात

आदमी हैवान
शौषण पानी का
सुबकते नदी नाले
फैलते शहर
प्रदुषित पर्यावरण
जहर घोलते
कल कारखाने
कटते वृक्ष
अन्याय प्रकृति पर
फिर भी उम्मीद
बरसात की

कुदरत नहीं करती
बेइन्साफ किसी से
तुम उसे जीने दोगे
वह मरने नही देगी
होगी वर्षा भरपूर
नाच उठे मन मयूर

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Loading...