Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Feb 2019 · 2 min read

चूड़ियाँ

युग बदला, बदला नहीं, चूड़ी का श्रृंगार।
इस युग में भी चूड़ियाँ, मिलते कई प्रकार।। १

फैशन के युग में बने, नित नूतन आकार।
हर युग में हरदम रही, चूड़ी का व्यापार।। २

व्याह मांगलिक कार्य हो, पर्व-तीज-त्योहार।
रंग-बिरंगी चूड़ियाँ, अब भी पहने नार।। ३

नारी को भाती सदा, चूड़ी का उपहार।
हो चाहे शादीशुदा, चाहे रहे कुमार।। ४

लाल लाख की चूड़ियाँ, सुहाग की पहचान।
कहे कहानी प्रीत की, है पावन स्थान।। ५

सभी धर्म में चूड़ियाँ, पहनने का रिवाज ।
कर्ण प्रिय होता मघुर, चूड़ी की आवाज।। ६

आदि काल से चूड़ियाँ, संस्कृति का आघार।
खुशहाली की चिन्ह यह, प्रमुख कर अलंकार।। ७

खनके हाथों में सदा, चूड़ी वृत्ताकार।
रिक्त कलाई हो नहीं, भरी रहे दो-चार।। ८

पहने बेटी हाथ में, चूड़ी बनी दुलार।
बहू कलाई पर सजी, घर का पूरा भार।। ९

हाय! निगोड़ी चूड़ियाँ, , आये कभी न बाज।
खनक-खनक कर हाथ में,कह दे सारे राज।। १ ०

रिश्ते चूड़ी की तरह, गये हाथ से छूट।
रहते कुछ दिन साथ में, फिर जाते हैं टूट।। १ १

जो अपने बनकर रहे, गये भँवर में छोड़।
जैसे चूड़ी काँच की, दिये खेल में तोड़।। १ २

चूड़ी वाले हाथ को, मत समझो बेकार।
भारत, लंका पाक में, सफल रही सरकार।। १ ३

“बैठ पहन कर चूड़ियाँ “, उपमा दी कमजोर।
धरा-गगन से चाँद तक, है चूड़ी का शोर।। १ ४

अब शरहद पर गूँजती, चूड़ी की झनकार।
झाँसी की रानी बनी,उठा लिया तलवार।। १५

दुर्गा, काली भगवती, श्रेष्ठ शक्ति अवतार।
हाथों में चूड़ी पहन,करें दुष्ट संहार। १६

बजे रसोई चूड़ियाँ, अनपूर्णा का रूप।
रातों की लोरी बनी,दिया छाँव जब धूप।। १७

-लक्ष्मी सिंह

718 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from लक्ष्मी सिंह
View all

You may also like these posts

*गज़ल
*गज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
अपने नियमों और प्राथमिकताओं को बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित क
अपने नियमों और प्राथमिकताओं को बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित क
पूर्वार्थ
वक्त-वक्त की बात है
वक्त-वक्त की बात है
Pratibha Pandey
ग़ज़ल _ शौक़ बढ़ता ही गया ।
ग़ज़ल _ शौक़ बढ़ता ही गया ।
Neelofar Khan
कुंभकार
कुंभकार
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
इख़्तिलाफ़
इख़्तिलाफ़
अंसार एटवी
यही सोचकर आँखें मूँद लेता हूँ कि.. कोई थी अपनी जों मुझे अपना
यही सोचकर आँखें मूँद लेता हूँ कि.. कोई थी अपनी जों मुझे अपना
Ravi Betulwala
" सोचो "
Dr. Kishan tandon kranti
तजुर्बे से तजुर्बा मिला,
तजुर्बे से तजुर्बा मिला,
Smriti Singh
* थके पथिक को *
* थके पथिक को *
surenderpal vaidya
कब तक छुपाकर रखोगे मेरे नाम को
कब तक छुपाकर रखोगे मेरे नाम को
Manoj Mahato
शुभ संकेत जग ज़हान भारती🙏
शुभ संकेत जग ज़हान भारती🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
प्रेम ईश्वर
प्रेम ईश्वर
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
अक्सर तुट जाती हैं खामोशी ...
अक्सर तुट जाती हैं खामोशी ...
Manisha Wandhare
बड़ी मादक होती है ब्रज की होली
बड़ी मादक होती है ब्रज की होली
कवि रमेशराज
👏मेरे प्रभु!!👏
👏मेरे प्रभु!!👏
*प्रणय प्रभात*
*
*"अवध में राम आये हैं"*
Shashi kala vyas
पवित्रता
पवित्रता
Rambali Mishra
प्रेरणा गीत
प्रेरणा गीत
अनिल कुमार निश्छल
"ना कृष्णा ना राम मिलेंगे"
Madhu Gupta "अपराजिता"
ग़ज़ल(चलो हम करें फिर मुहब्ब्त की बातें)
ग़ज़ल(चलो हम करें फिर मुहब्ब्त की बातें)
डॉक्टर रागिनी
बेबाक ज़िन्दगी
बेबाक ज़िन्दगी
Neelam Sharma
बाण मां के दोहे
बाण मां के दोहे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
चैत्र प्रतिपदा फिर आई है, वसुधा फूली नही समाई है ।
चैत्र प्रतिपदा फिर आई है, वसुधा फूली नही समाई है ।
विवेक दुबे "निश्चल"
आकांक्षा पत्रिका समीक्षा
आकांक्षा पत्रिका समीक्षा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
దేవత స్వరూపం గో మాత
దేవత స్వరూపం గో మాత
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
देखा है कभी?
देखा है कभी?
सोनू हंस
राह में मिला कोई तो ठहर गई मैं
राह में मिला कोई तो ठहर गई मैं
Jyoti Roshni
शब-ए-सुखन भी ज़रूरी है,
शब-ए-सुखन भी ज़रूरी है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
4753.*पूर्णिका*
4753.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...