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23 Oct 2021 · 1 min read

‘डोर’

आज भी,
स्नेह सिंचित है इक डोर।
तुम तक ले जाती है जो,
जिसे तुम देखकर भी
अनदेखा करने का अभिनय
बखूबी एक मंजे हुए
अभिनेता की तरह कर लेते हो,
फिर भी, कोई तो है!
जिससे तुम बच नहीं सकते!
तुम्हारी दृष्टि पड़ते ही,
स्नेह सिंचित हो,
और भी दृढ़ता से
जीवंत हो उठती है।
देह के मिटने के पश्चात भी
टूटेगी नहीं ।
©®

Language: Hindi
3 Likes · 1 Comment · 246 Views
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