मशक-पाद की फटी बिवाई में गयन्द कब सोता है ?
ये न सोच के मुझे बस जरा -जरा पता है
कविता: मेरी अभिलाषा- उपवन बनना चाहता हूं।
प्रेरणा और पराक्रम
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
तुम होते हो नाराज़ तो,अब यह नहीं करेंगे
देह अधूरी रूह बिन, औ सरिता बिन नीर ।
तेरा-मेरा साथ, जीवन भर का...
तलाशी लेकर मेरे हाथों की क्या पा लोगे तुम
"नवसंवत्सर सबको शुभ हो..!"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
ग़ज़ल - कह न पाया आदतन तो और कुछ - संदीप ठाकुर
है हमारे दिन गिने इस धरा पे
देवतुल्य है भाई मेरा
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
पृष्ठों पर बांँध से बांँधी गई नारी सरिता
सरप्लस सुख / MUSAFIR BAITHA