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14 May 2023 · 2 min read

माँ का निश्छल प्यार

तरु पल्लव सी ठंडी छाया उसके आंचल से मिलती है

बाल सुलभ मन की पीड़ा गोदी में लेकर हर लेती है

माँ तेरा यह निश्छल प्यार तू शीतल सी छाया देती है

शीतलता का एहसास उसके आंचल की छाया में

पतझड़ में भी सावन बनकर हर उपवन महकाती है

माँ तेरा यह निश्छल प्यार श्रद्धा सुमन बन महकाती है

निर्मम और निष्ठुर शब्द उसके शब्दकोश में नहीं

लाख दुखों को सहकर भी पालन पोषण करती है

माँ तेरा निश्छल प्यार हर मुश्किल में साथ मेरा देती है

हर ख्वाबों को सतरंगी रंगों से बुनकर बांहों में भर लेती

जीवन का नव श्रृंगार कर पीयूष रस वो छलकाती है

माँ तेरा यह निश्छल प्यार संस्कार नए सिखाती है

कितनी रातों को जागकर थपकी देकर मुझे सुलाती

आज भी मां तेरी हर यादें मन को मेरे बहलाती है

माँ तेरा यह निश्छल प्यार नित नए सपने संजोती है

पड़ ना किसी का साया रोज टीका काजल लगाती

हर दर्द समझ जाती डांट कर भी बेइंतहा प्यार जताती है

माँ तेरा यह निश्छल प्यार ममत्व का भाव सिखाती है

जब भी रोया माँ तड़प कर तूने मुझे गले लगाया है

आंचल थामें जब भी आगे बढ़ा एक नई राह दिखाती है

माँ तेरा यह निश्छल प्यार जिंदगी जीना हमें सिखाती है

सारी मोहब्बत को इकट्ठा कर भगवान ने मां को बनाया

जग के कोलाहल में ठंडी छांव सा शीतल सुख देती है

माँ तेरा यह निश्छल प्यार तू शीतल सी छाया देती है

भोर की पहली किरण सी खिलखिलाती हुई जब आती

हर रोज सूरज की किरण बनकर मुझे जगाती आती है

माँ तेरा यह निश्छल प्यार किरणों सी चमक देती है।

Tag: Poem
206 Views
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