Ghar / घर
जिधर देखूं उधर ही घर सजा संवरा लगे
तेरे घर में मुझे सब कुछ बहुत अच्छा लगे
नफ़स में घुल रही हैं मीठी मीठी खुशबुएं
यहां का ईंट पत्थर चांदी सोना सा लगे
अजब सा एक अपनापन तुम्हारे घर में है
दरो दीवार तक मुझको मेरा अपना लगे
ग़ज़ब की ताब है इसमें ग़ज़ब का नूर है
तेरा चेहरा तो मुझको हुस्न का चेहरा लगे
कभी देखूं तो इसको देखता ही मैं रहूं
मुझे तो आपका घर आपके जैसा लगे
…….. शिवकुमार बिलगरामी