ग़ज़ल कहने की कोशिश
???एक ख़याल …………………..?????
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न कोई आहटें होतीं न कोई शोर होता है;
मेरी तनहायियों पे सिर्फ तेरा ज़ोर होता है..!!
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ज़रा सा हौसला रखना के बस शब ढल हई समझो;
अँधेरा सुब्ह से पहले बहुत घनघोर होता है..!!
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कई रंगों में ढलती हूँ कई चेहरे बदलती हूँ ;
भला तुझसे मिलूँ कैसे ये दिल कमज़ोर होता है..!!
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बता दे ? ऐ खुदा ! ये बेटियाँ तेरी कहाँ जायें;
गली , रस्ते में भँवरा “घर” में आदमखोर होता है..!!
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मैं कहने से कभी हालात के बारे नहीं चूकी;_
वही कहता नहीं है जिसके दिल में चोर होता है..!!
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उफ़नती हो बिगड़ती हो दिवाने तो दिवाने हैं;
दिवानों की नज़र में बस नदी का छोर होता है..!!
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? अर्चना पाठक “अर्चिता” ?
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