■ आदिकाल से प्रचलित एक कारगर नुस्खा।।
अब तक मुकम्मल नहीं हो सका आसमां,
हम समुंदर का है तेज, वह झरनों का निर्मल स्वर है
*अग्रोहा फिर से मिले, फिर से राजा अग्र (कुंडलिया)*
फिर से तन्हा ek gazal by Vinit Singh Shayar
क्या आसमां और क्या जमीं है,
लोग मुझे अक्सर अजीज समझ लेते हैं
उसकी जरूरत तक मैं उसकी ज़रुरत बनी रहीं !
वक्त से वक्त को चुराने चले हैं
चक्षु सजल दृगंब से अंतः स्थल के घाव से
आब त रावणक राज्य अछि सबतरि ! गाम मे ,समाज मे ,देशक कोन - को
गरीबों की जिंदगी
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
--एक दिन की भेड़चाल--
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
जहां आपका सही और सटीक मूल्यांकन न हो वहां पर आपको उपस्थित ह
अपने घर में हूँ मैं बे मकां की तरह मेरी हालत है उर्दू ज़बां की की तरह
लौह पुरुष - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)