23/218. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
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23/218. छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
🌷 तोर कठ्ठल कठ्ठल के हांसी🌷
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तोर कठ्ठल कठ्ठल के हांसी ।
मोर बर हो जाथे फांसी।।
तै खुसी के फूल खिलाबे।
राखबे झन संग उदासी ।।
कोन संगी बनही जग मा।
गुनत हो जाथे रोवासी ।।
ये मया पीरित के बंधना।
देख बनथे दुनिया दासी ।।
देख के समझ इहां खेदू।
मन हमर हे मथुरा कांसी।।
………….✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
01-01-2024सोमवार