2 जून की रोटी…….एक महत्व
शीर्षक – जून की रोटी
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हम सभी जानते हैं। मानवता के साथ साथ जून की रोटी का मतूआज की तारीख 2 जून की तारीख से
एक प्रचलित कहावत है 2 जून की रोटी इसे लेकर बात करें तो, ‘2 जून की रोटी’ आमतौर पर एक प्रचलित कहावत हैं। आज भी माता-पिता अपने बच्चों को अन्न का अनादर न करने के लिए इस कहावत का इस्तेमाल करते हैं। बच्चों को खाने को बर्बाद करने से रोकने के लिए कहा जाता है कि आजकल लोगों को दो जून की रोटी ही मिल जाए बड़ी बात होती है और कुछ लोग खाना बर्बाद कर रहे हैं। ज्यादातर उत्तर भारत में इस कहावत का इस्तेमाल किया जाता है। हमारे भारत देश में सबके नसीब में नहीं ‘दो जून की रोटी’
कृषि प्रधान देश होने के बावजूद देश में कई लोग ऐसे हैं जिनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती है। हालांकि, इन गरीबों के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है और लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। कोरोनाकाल के बाद से केंद्र की मोदी सरकार गरीबों के लिए मुफ्त अनाज भी उपलब्ध करा रही है, जिससे 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को फायदा हो रहा है।वास्तव में, “2 जून की रोटी” का तात्पर्य दिन में दो बार भोजन करने से है, जो प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता है। कर्मचारियों, व्यवसाय मालिकों और गरीबों सहित जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग अपने भोजन को सुरक्षित करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। जौ की रोटी गिदोन का प्रतिनिधित्व करती थी। जौ की रोटी गरीब आदमी की रोटी थी। यह इस तथ्य को दर्शाता है कि इज़राइल और गिदोन गरीब, तिरस्कृत और उत्पीड़ित थे। गिदोन स्वयं शक्तिशाली और महान नहीं था, बल्कि कमजोर और तुच्छ था। जौ हमें यहूदी धर्म में विविधता को अपनाने का महत्व सिखाता है, जो पहली बार हजारों साल पहले रूथ के समय में दर्ज किया गया था। यह रूथ और बोअज़ जैसे लोग और उनके वंशज हैं जो अक्सर एक पीढ़ी के महान नेता बनते हैं। मेरे लिए, जौ आस्था और आध्यात्मिकता का भी प्रतिनिधित्व करता है। परिचय (Parichay) जौ दुनिया भर में खेती किए जाने वाले सबसे पुराने पौधों में से एक है और यह शुरुआत के दिनों में जानवरों और मनुष्यों का मुख्य भोजन रहा है। जौ का वैज्ञानिक नाम होर्डियम वल्गारे एल. है। जून की रोटी’ का मतलब लोगों से ‘दो जून की रोटी’ होता है. इंसान की जो सबसे आम जरूरत है, वो खाना भी वही है. खाने के लिए इंसान क्या नहीं करता . नौकरी, बिजनेस करने वाले से लेकर गरीब तक, हर नौकरीपेशा की मूल आवश्यकता खाना ही है।
एक सच यही है कि हम सभी को पहले रोटी का महत्व बहुत अधिक था और रोटी के लिए हमें काम मिलता था।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र