*नयनों में नीर की बाढ़ लाई है*

नयनों में नीर की बाढ़ लाई है
************************
आज फिर उनकी याद आई है,
नयनों में नीर की बाढ़ लाई है।
हरकतों से कभी बाज न आई,
जालिम दुनिया बड़ी हरजाई है।
जब बढ़ती जाती हैं मजबूरियाँ,
पैरों को ढकती नहीं रजाई है।
चाँदनी रातों में अक्सर देखी है,
खुद से बड़ी दिखती परछाई है।
खाली खाली खोली मनसीरत,
यूँ बदले में मिलती रुसवाई है।
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)