16. आग
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सिर्फ सूरज की तपिश में तुम सच को ढूंढा मत करो,
काले घने बदल भी सच के साथी होते हैं।
बातें तुम्हारी सारी मैं दिल में छुपा लेता मगर,
विस्मृत बातों से बढ़कर भी कुछ अमिट यादें होती हैं।
ऐसे मुकर जाना तुम्हारा अपनी बातों से ठीक नहीं,
औरों से मुकर जाएँ तो भी सौ बातें होती हैं।
तुम इल्ज़ाम मेरे सिरहाने पर रखकर चले जाओ कहीं,
आए दिन इल्ज़ामों की भी नीलामी होती है।
प्रेम की धारा खो गई मगर तुम अविरल आबाद रहो,
ये बस किस्सों में होता है जहां दिल में आग नहीं होती है।
~राजीव दत्ता ‘घुमंतू’