16)”अनेक रूप माँ स्वरूप”
धरती माँ का है आशीर्वाद,
मिट्टी की सौंधी खूशबू का राज़,
बेटी,बहू,पत्नी,बहन का अवतार।
“अनेक हैं रूप,माँ स्वरूप”
बहू,बेटी,माँ,सास का आता ख़्याल,रिश्ता है कमाल,
सम्भव है, असम्भव कुछ नहीं,
दिलों से जुड़ते और जोड़ते दिलों के ही हैं तार,
मायका और ससुराल।
“अनेक हैं रूप,माँ स्वरूप”
बेटी बनी बहू,माँ सा फ़र्ज़ निभाए,
तो क्यूँ नहीं?माँ की झलक आए।
प्रश्न जो उभर कर आते, क्या जवाब सब दे पाते?
“अनेक है रूप,माँ स्वरूप”
माँ से पूछा.. क्या दिन है ख़ास?
जवाब था ख़ूब..
प्यार, मुहब्बत का औढ़ा मैंने लिबास,
बेटी,बहू पत्नी,बहन का मिला वास,
आदर और मान ग़र पास,हर दिन माँ का ख़ास।
“अनेक हैं रूप,माँ स्वरूप”
विशालता शालीनता से दुखों को पार लगाएँ,
दुआओं से अक्सर हाथ उठाएँ,
संस्कार वं कर्तव्यों का पाठ पढ़ाएँ,
भर आँचल में सागर,सुखों वं ख़ुशियों का दीप जलाएँ।
निश्चल निष्कपट पावन है नूर,
बेटी, बहू पत्नी, बहन अनेक है रूप,
“माँ स्वरूप…माँ स्वरूप”
✍🏻स्व-रचित/मौलिक
सपना अरोरा ।