0000 चाँदनी रात 0000
चाँदनी रात
शाम ढल चुकी है
रात होने वाली है
चाँद पूरी अंगड़ाई
लिये अपनी चाँदनी
बिखेरने को बेताब
तारे भी अभी से
चमकाना शुरू
हो गये है
रात रानी ने अपनी
खुशबू से महकाना
शुरू कर दिया है
दौड़ते वाहनों में से
कूछ ने विराम ले
लिया है
ये चाँदनी रात
बस ऐसे ही अपनी
मदहोश में सभी
को मदहोश करने वाली है
शाम ढल चुकी है
रात होने वाली है
© कवि कपिल खंडेलवाल
कोटा – 324005 (राजस्थान)
मों न -9251427109