✍️पेट की भूख का शोर
वो नजरे
गढ़ाये खड़ा था
जगमगाती
रोशनी उसकी
आँखों में जुगनू
की तरह
आंखमिचौली
खेल रही थी
वैसे तो सारा
आसमाँ बेशुमार
प्रकाशदीपो से
झिलमिल हो उठा था
लेकिन उसके चेहरे पर
काली अमावस की रात
अँधेरा बिखेर रही थी
अनगिनत पटाखों
फुलझड़ी की लड़ियाँ
उसके कोमल मन
को मोहित कर रही थी
टूटे खिड़की से दूर
गगन के चकाचौन्ध
रोशनी के नज़ारे
वो देखते रह गया
पटाखों के शोर में
पेट की भूख का शोर
वो बच्चा अनदेखा कर गया
एक मिट्टी का दीप जलाकर
घर में कुछ उजाला कर गया
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©✍️’अशांत’ शेखर
24/10/2022