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15 Nov 2018 · 1 min read

वो ‘मां’ कहलाती है

इक छोटे से संबोधन में पूरी दुनिया सिमट जाती है,
अपने खून से नव जीवन सृजन कर, वो औरत से “मां” बन जाती है।
अमृत से सींचकर वो अपने बच्चे को, इस दुनिया में जीने लायक बनाती है
इस क़दर वो अपना दिलों जान अपने बच्चे पे लुटाती है।

उसके आंचल के आगे बाकी सारी खुशियां फीकी पड़ जाती है
रहता है जिस पे उसका साया, ज़िन्दगी उसकी खुशहाल हो जाती है।
हमारी एक आह पर जो रातों की नींद और दिन का चैन गंवाती है
हमारी परेशानियों के सामने जो ढाल बनकर आती है
मौसम और हालात कुछ भी हो, वो हमेशा हम बच्चों पर खुशियां ही बरसाती है।

स्वार्थ भरी इस दुनिया में, इक वो ही तो है
जो बिन सोचे प्यार बेशुमार लुटाती है
हां, वो भगवान तो नहीं, पर उनसे थोड़ी ज़्यादा
हर बच्चे की “जान और जहां” बन जाती है
यूं ही नहीं वो इक औरत से ‘मां’ बन जाती है।।

शिखा मिश्रा ‘भावावेशी’
दरभंगा

17 Likes · 47 Comments · 1156 Views
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