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31 Oct 2017 · 2 min read

मेरा विद्यालय-शिक्षा का बदलता स्वरुप

साम नाद का वह स्वर जो अरण्य से कानों में आता था,
तत्व ज्ञान विज्ञान की शिक्षा को जो हमको सिखलाता था,
ऐसी बहुमुखी शिक्षा का कत्ल भला क्यों कर डाला ?
आह! निकलती इस मन से हमने यह विष प्याला क्यों पी डाला ? ।।1।।
विद्या की प्रथम पाठशाला जीजा बाई की याद करातीं थीं,
प्रेरित होकर माताएँ बच्चों को गीता पाठ करातीं थीं,
इस शाला का रूप बदलकर कत्ल भला क्यों कर डाला ?
आह! निकलती इस मन से हमने यह विष प्याला क्यों पी डाला ? ।।2।।
बहुरंगी शिक्षाओं का आयाम हमारा विद्यालय था,
सभ्य समाज बनेगा कैसे मुख्य स्रोत विद्यालय था,
विद्या के आलय का कत्ल भला हमने क्यों कर डाला?
आह! निकलती इस मन से हमने यह विष प्याला क्यों पी डाला ? ।।3।।
ऋषि मुनि जो तप अर्जित कर बल का संयम रखते थे,
देकर शिक्षा परमारथ की त्याग सरिस जीवन जीते थे,
पश्चिम की शिक्षा अपना कर, स्वयं का कत्ल भला क्यों कर डाला ?
आह! निकलती इस मन से हमने यह विष प्याला क्यों पी डाला? ।।4।।
दारुण उपजा मन में मेरे, भोगवाद की शिक्षा को लेकर,
मानव भटका अपने तल से विकृत सी शिक्षा को लेकर,
पुण्यमयी भागीरथी सी शिक्षा का हमने कत्ल भला क्यों कर डाला?
आह! निकलती इस मन से हमने यह विष प्याला क्यों पी डाला? ।।5।।
अभी समय है साफ करें हम शिक्षा के इस दर्पण को,
प्रखर बनाती जो अपनी संस्कृति के रूप और यौवन को,
नव चिन्तन से ध्यान हटाकर अपना कत्ल भला क्यों कर डाला ?
आह! निकलती इस मन से हमने यह विष प्याला क्यों पी डाला? ।।6।।

###अभिषेक पाराशर###

Language: Hindi
9120 Views
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