⛅ हमारी रंगीन दुनिया ☔
⛅ हमारी रंगीन दुनिया ☔
?दिनेश एल० “जैहिंद”
श्वेत बादलों के आगोश में चाँद दिखा है ।
आभास होता कि सीप में मोती छिपा है ।।
चित्र की बनावट है प्रकृति के नमूने जैसा ।
कोई तूलिका भी न खींच पाए चित्र ऐसा ।।
मेघ-जल-चाँद मिलकर हमें भरमाते हैं ।
बड़ी विचित्र खुले मुख की छबि बनाते हैं ।।
सत् से मिल परछाई क्या रूप सजाती है ।
चाँद से लेकर रोशनी मोती बन जाती है ।।
है ऐसी ही द्विअर्थी हमारी रंगीन दुनिया ।
जहाँ होते एक-से-एक बढ़कर बड़े गुनिया ।।
शराफ़त के चोले में होते ज़हर की पुड़िया ।
मान बेच कर नारी का मौज करे रसिया ।।
वाणी बोले कोयल की काक जैसा मन है ।
हृदय में तो मैल बैठा गोरा-गोरा तन है ।।
मुख पर मुस्कान बड़ी मन में उलझन है ।
दिल में रखे यार की छबि ऐसी दुल्हन है ।।
एक तरफ राम-राम दूजी ओर ध्यान है ।
पाठ पढ़ाए बच्चों को और कहीं कान हैं ।।
गीता पर हाथ मगर सब झूठे बयान है ।
जाने सबकुछ पुलिस फिर भी अंजान है ।।
ख़ाकी वर्दी में पुलिस हमें चूस रही है ।
ठगनी भी हमें साध्वी बन लूट रही है ।।
ख़ादी वेश में भी हमें नेता मूढ़ रहे हैं ।
सारे वकील भी बोल यहाँ झूठ रहे हैं ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
18. 05. 2017