■ जीवन सार…
■ एक ही निष्कर्ष….
आत्मकेंद्रित लोग प्रायः संसार सागर में एकाकी ही रह जाते हैं। मद के वशीभूत सह-अस्तित्व को अपने दम्भ के साथ नकारने की पीड़ा का आभास उन्हें जीवन की सांध्यवेला में होता ही है। जब न सौंदर्य काम आता है, न धन। न रिश्ते-नाते और न ही अपनी देह।।
【प्रणय प्रभात】