■ एक_नज़्म_ख़ुद_पर
■ सफ़र में हूँ….
【प्रणय प्रभात】
सफ़र में हूँ नज़र के सामने केवल अँधेरा है।
अँधेरा यानि गुमनामी जो मेरे साथ है अब तक,
अँधेरा यानि नाकामी जो मेरे साथ है अब तक।
अँधेरा यानि गर्दिश वक़्त की जो साथ चलती है,
अँधेरा यानि वो हसरत अँधेरों में जो पलती है।
धुंधलका देखते ही देखते होता घनेरा है।।
सफ़र में हूँ नज़र के सामने केवल अँधेरा है।
हैं कुछ यादों के जुगनू साथ रह कर जगमगाते है,
अकेला तू नहीं अहसास जो अब भी दिलाते हैं।
दुआएं चमचमाती हैं कभी बर्क़े-तपां बन कर,
हमेशा साथ लगती हैं पिता बन के या माँ बन कर।
बहुत महफ़ूज़ रखता है ये जो रहमत का घेरा है।
सफ़र में हूँ नज़र के सामने केवल अँधेरा है।
क़दम साँसों के संग उट्ठे मिले रफ़्तार धड़कन से,
हमेशा से रही कोशिश लगे ना दाग़ दामन से।
बड़ी ख़्वाहिश थी फूलों की मगर कुछ ख़ार पा बैठा।
कभी सर आ गिरी शबनम कभी अंगार पा बैठा।
लबों ने बस कहा रब से बड़ा अहसान तेरा है।
सफ़र में हूँ नज़र के सामने केवल अँधेरा है।
हज़ारों रोज़ो-शब बीते महीने फिर बरस गुज़रे,
कई मौसम गए आए लगा आए कि बस गुज़रे।
लगीं कुछ उम्र की गाँठें गया बचपन जवानी भी,
हुआ अक़्सर लहू जब बन गया आँखों का पानी भी।
मगर थकना नहीं रुकना नहीं बस अहद मेरा है।
सफ़र में हूँ नज़र के सामने केवल अँधेरा है।
कहाँ पे ख़त्म होगा ये सफ़र मंज़िल कहाँ होगी,
मगर इतना समझता हूँ वहीं होगी जहाँ होगी।
बहुत ऊँची पहाड़ी के तले सूरज छिपा होगा,
उसी को खोजना होगा तभी चाहा हुआ होगा।
भले नज़रों में शब हो फिर भी ख़्वाबों में सवेरा है।
सफ़र में हूँ नज़र के सामने केवल अँधेरा है।
सफ़र मंज़िल का वायज़ है सफ़र ही खुशनुमा घर है,
दुआओं पर भरोसा है नहीं तक़दीर का डर है।
हज़ारों नेकियाँ कहतीं तुझे सूरज उगाना है,
कई क़समें बताती हैं सवेरा ले के आना है।
क़दम उस ओर उठते हैं जिधर सूरज का डेरा है।
मेरी आँखों में शब हो फिर भी सपनों में सवेरा है।।
#आत्म-कथ्य-
अपनी ज़िंदगी की तमाम अधूरी ख्वाहिशों और पूरी कोशिशों को समर्पित 😊😊😊