हमसे भी अच्छे लोग नहीं आयेंगे अब इस दुनिया में,
ये दाग क्यों जाते नहीं,
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
देह अधूरी रूह बिन, औ सरिता बिन नीर ।
जिंदगी ढल गई डोलते रह गये
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
मुक्कमल कहां हुआ तेरा अफसाना
ये मानसिकता हा गलत आये के मोर ददा बबा मन साग भाजी बेचत रहिन
होली के रंग
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
आज एक अरसे बाद मेने किया हौसला है,
*ई-रिक्शा तो हो रही, नाहक ही बदनाम (पॉंच दोहे)*
हे पुरुष ! तुम स्त्री से अवगत होना.....