मैनें प्रत्येक प्रकार का हर दर्द सहा,
कलम व्याध को बेच चुके हो न्याय भला लिक्खोगे कैसे?
।। श्री सत्यनारायण कथा द्वितीय अध्याय।।
कवि की कल्पना
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
*नए दौर में पत्नी बोली, बनें फ्लैट सुखधाम【हिंदी गजल/ गीतिका】
रहने भी दो यह हमसे मोहब्बत
रक्षा है उस मूल्य की,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
काव्य_दोष_(जिनको_दोहा_छंद_में_प्रमुखता_से_दूर_रखने_ का_ प्रयास_करना_चाहिए)*
23/169.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
अखंड साँसें प्रतीक हैं, उद्देश्य अभी शेष है।
Kohre ki bunde chhat chuki hai,
कहते हो इश्क़ में कुछ पाया नहीं।
एक पुरुष कभी नपुंसक नहीं होता बस उसकी सोच उसे वैसा बना देती
सुदामा कृष्ण के द्वार (1)
वीर रस की कविता (दुर्मिल सवैया)
परिसर खेल का हो या दिल का,