Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Jul 2023 · 1 min read

रहने भी दो यह हमसे मोहब्बत

रहने भी दो यह हमसे मोहब्बत, चाहते नहीं अब हम यह फसाना।
जख्म वो अभी मिटे नहीं पुराने, चाहते नहीं दिल को फिर से फसाना।।
रहने भी दो यह हमसे ———————–।।

आबाद है हमसे खेलकर वो,करके किनारा चला वो गया है।
एतबार था हमको जिसपे बहुत ही, दिल वो हमारा तोड़ गया है।।
गई याद नहीं अभी उसकी दिल से,आता है याद वह किस्सा पुराना।
रहने भी दो यह हमसे—————-।।

बर्बाद इसमें हम हो गए हैं, बदनाम उसने हमें कर दिया है।
उसका भी था दोष बराबर, इल्जाम हमपे लगा दिया है।।
होती है नफरत मोहब्बत से अब, चाहते नहीं अब मोहब्बत करना।
रहने भी दो यह हमसे ———————।।

हो गई आदत जीने की तन्हा, नहीं अब जरूरत किसी हमसफर की।
रहने दो अब जी. आज़ाद हमको,ख्वाहिश नहीं अब हमें गुलबदन की।।
खुश है बहुत हम यह छोड़कर शौक, नहीं अब हमें इस राह में चलना।
रहने भी दो यह हमसे—————–।।

शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

Language: Hindi
Tag: गीत
161 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
यहां नसीब में रोटी कभी तो दाल नहीं।
यहां नसीब में रोटी कभी तो दाल नहीं।
सत्य कुमार प्रेमी
लौट  आते  नहीं  अगर  बुलाने   के   बाद
लौट आते नहीं अगर बुलाने के बाद
Anil Mishra Prahari
ले बुद्धों से ज्ञान
ले बुद्धों से ज्ञान
Shekhar Chandra Mitra
" दम घुटते तरुवर "
Dr Meenu Poonia
अकेलापन
अकेलापन
Neeraj Agarwal
रिश्तों में वक्त नहीं है
रिश्तों में वक्त नहीं है
पूर्वार्थ
Gairo ko sawarne me khuch aise
Gairo ko sawarne me khuch aise
Sakshi Tripathi
कई वर्षों से ठीक से होली अब तक खेला नहीं हूं मैं /लवकुश यादव
कई वर्षों से ठीक से होली अब तक खेला नहीं हूं मैं /लवकुश यादव "अज़ल"
लवकुश यादव "अज़ल"
अभी गनीमत है
अभी गनीमत है
शेखर सिंह
बेटियां! दोपहर की झपकी सी
बेटियां! दोपहर की झपकी सी
Manu Vashistha
सवर्ण पितृसत्ता, सवर्ण सत्ता और धर्मसत्ता के विरोध के बिना क
सवर्ण पितृसत्ता, सवर्ण सत्ता और धर्मसत्ता के विरोध के बिना क
Dr MusafiR BaithA
2739. *पूर्णिका*
2739. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मां के हाथ में थामी है अपने जिंदगी की कलम मैंने
मां के हाथ में थामी है अपने जिंदगी की कलम मैंने
कवि दीपक बवेजा
बैलगाड़ी के नीचे चलने वालों!
बैलगाड़ी के नीचे चलने वालों!
*Author प्रणय प्रभात*
मैं पतंग, तु डोर मेरे जीवन की
मैं पतंग, तु डोर मेरे जीवन की
Swami Ganganiya
फितरत
फितरत
लक्ष्मी सिंह
*** सफ़र जिंदगी के....!!! ***
*** सफ़र जिंदगी के....!!! ***
VEDANTA PATEL
कोई उपहास उड़ाए ...उड़ाने दो
कोई उपहास उड़ाए ...उड़ाने दो
ruby kumari
झूठी है यह सम्पदा,
झूठी है यह सम्पदा,
sushil sarna
सबसे बढ़कर जगत में मानवता है धर्म।
सबसे बढ़कर जगत में मानवता है धर्म।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
सब्र रखो सच्च है क्या तुम जान जाओगे
सब्र रखो सच्च है क्या तुम जान जाओगे
VINOD CHAUHAN
World Blood Donar's Day
World Blood Donar's Day
Tushar Jagawat
कुछ काम करो , कुछ काम करो
कुछ काम करो , कुछ काम करो
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
पहले दिन स्कूल (बाल कविता)
पहले दिन स्कूल (बाल कविता)
Ravi Prakash
"वो"
Dr. Kishan tandon kranti
विश्वास
विश्वास
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
SCHOOL..
SCHOOL..
Shubham Pandey (S P)
तो मेरा नाम नही//
तो मेरा नाम नही//
गुप्तरत्न
ତାଙ୍କଠାରୁ ଅଧିକ
ତାଙ୍କଠାରୁ ଅଧିକ
Otteri Selvakumar
मुझे     उम्मीद      है ए मेरे    दोस्त.   तुम.  कुछ कर जाओग
मुझे उम्मीद है ए मेरे दोस्त. तुम. कुछ कर जाओग
Anand.sharma
Loading...